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________________ १२० अनुसन्धान-७५(१) १६६३मां 'प्रभासे' नकल थई.११ ४. अंजनासती रास (रच्या सं. १६६७)नी ६०३मी कडीमां 'देवकिपाटणि अवतरिउ रे' उल्लेख.१२ हीरविजयसूरिओ सं. १६८५मां 'देवपत्तने' लाभ प्रवहण सज्झाय कृति पूर्ण करी. आ कृतिनी प्रारम्भनी ७२ कडी खम्भातमां रचायेल.१३ ६. मूळ सं. १६६९मां रचायेल मदनकुमार रास अथवा चोपाईनी मुनि पुण्यसागरश्रीओ देवकापत्तने संवत १७००मां नकल उतारी.१४ ७. त्रिभुवनकुमार रास (रच्या सं. १७१२)नी ओक प्रत सं. १७३६मां देवपत्तन नगरे उताराई.१५ ८. श्रीपाल (सिद्धचक्र रास) रच्या सं. १७२६नी सं. १७४०मां 'सुरपत्तन'नो उल्लेख.१६ चैत्यपरिपाटी (रचना सं. १४८७)मां गुजरात-सौराष्ट्रना विभिन्न स्थळोना उल्लेखमां सौराष्ट्रना स्थळोमां-अजाहरि, दीव, ऊन, कोडियनारि, देवकीपाटण, वेलाउल व.नो उल्लेख.१७ आठमा शतकना अन्तभागमां के नवमाना प्रारम्भमां प्रभासमां बोटिकक्षपणक के दिगम्बर सम्प्रदायना अस्तित्वना पुरावारूप कोई मन्दिर होवानो पुरावो मळे छे : हाल जूनागढ (सक्करबाग) संग्रहालयमा संरक्षित आदिनाथनी मस्तकविहीन प्रतिमा प्रभासथी लाववामां आवेली कहेवाय छे. तो, श्वेताम्बर सम्प्रदायना सौथी प्राचीन मन्दिर परम्परा अनुसार वलभी चन्द्रप्रभुनुं मनाय छे. अलबत्त आनी साथे संलग्न ८ थी ११ शतक सुधीना शिल्प के स्थापत्यना कोई पुरावा-प्रमाण दुर्भाग्ये मळ्या नथी. कदाच महमूदना आक्रमण समये चन्द्रप्रभ मन्दिरनो नाश थयो होय ने पाछळथी जीर्णोद्धार समये जूना खण्डित तमाम अवशेषो दूर कर्या होय. हालना चन्द्रप्रभ मन्दिरनो जूनो भाग स्पष्ट रीते १७मी सदीनो जणाय छे. ई.स. १२६४मां मांडवगढ (मण्डपदुर्ग)ना पेथड शाहे महातीर्थ१८ यात्रा करेल ओ दरम्यान तेने देवपत्तनमां सोमनाथ अने चन्द्रप्रभुनी वन्दना करतां दर्शाव्या छे, पण नोंधनीय छे. 'प्रबन्धचिन्तामणि' (ई.स. १३०५ रचनाकाळ)मां आचार्य हेमचन्द्र देवपत्तन-चन्द्रप्रभनो उल्लेख करतां मळे छे ते १२मी सदीमां
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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