________________
सप्टेम्बर - २०१८
ब्राह्मण हतो ने पछीथी जैनधर्म स्वीकार्यो हतो. मालवपति मुंज सिन्धुराज अने भोजनी सभानो ते अग्रणी हतो. तेमणे १५ गाथाओ- 'सत्यपुरमण्डन महावीरोत्साह' नामर्नु अपभ्रंश काव्य लख्युं छे. आमां अक तिहासिक विगत सचवाई रही छे. मारवाडना सत्यपुर-साचोर नामना नगरमां आवेल महावीरना मन्दिरनो म्लेच्छो भंग करी शक्या नहोता, अम कहेतां धनपाल लखे छे :
भंजेविणु सिरिमालदेसु अनु अणहिलवाडउं, चड्डावल्लि सोरठ्ठ भग्गु पुणु देलवाडउं; सोमेसरु सो तेहि भग्गु जणमणआणंदणु, भग्गु न सिरि सच्चउरि वीरु सिद्धत्थह नंदणु.
पूणिहि लहुय तुरुक्क कांइ सच्चउरि जिणंदह. सार : तुर्क लोकोओ श्रीमालदेश, अणहिलवाड पाटण, चन्द्रावती, सोरठ देलवाडा अने लोकोना मनने आनन्द आपनारा सोमेश्वर (महादेव)ने भांग्या, परन्तु सत्यपुर-(वर्तमान साचोर)मां आवेला सिद्धार्थपुत्र महावीरने अर्थात् तेना मन्दिर-मूर्तिने भांगी शक्या नहि..
महमूदे ई.स. १०२६ (वि.सं. १०८२)मां सोमनाथ पर आक्रमण कर्यु होई आ कवि त्यां सुधी जीवित होवो ज जोइओ, तो ज उक्त वर्णन संभवी शके. आम, सोमनाथ परना प्रथम मुस्लिम आक्रमणनो प्रथम उल्लेख पण जैन कविनी रचनामां मळतो होई तेने महत्त्वनो मानवो रह्यो.
तो मध्यकाळ दरम्यान प्रभासमां अनेक जैन कृतिओनी नकल (हाथप्रत) थयानां प्रमाण मळे छे. जेमके, १. पेथडरास - विक्रमना १३मां शतकमां थयेलां पोरवाड वंशना पेथडशाहना
सत्कृत्योर्नु आमां वर्णन छे. रास १५मा शतकना प्रारम्भे रचायानो मत छे.
आ रासना अन्ते सूरपत्तननो उल्लेख छे. २. साम्ब-प्रद्युम्न प्रबन्ध अथवा रासनी ओक प्रत सं. १६५९मां देवपत्तनमां
लखाणी.१० ३. सं. १५०९मां रत्नसिंह नामना कवि रचित 'रत्नचूड' नामना ग्रन्थनी सं.