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________________ ९२ अनुसन्धान-७५(१) पराक्रमोने बावन साका कहेवाय छे. बारोटी परम्परामां आ माटे 'छन्द' अवो पर्याय छे. अनो अर्थ जेनी पराक्रमगाथा विशिष्ट लय-आवेग साथे गवाय छे अवी वीररस पोषक रचना. बारोटी स्रोतमां आ माटे 'रासा' ओवो पर्याय छे. 'पृथ्वीचंद रासा'मां, चंदबारोटनी रचनामां से छे. देवीनी वीरगाथा पण 'छन्द' तरीके ओळखाय छे. आ 'चर्यागीति' अटले के Heroic deedsनु, पराक्रम, गान करतो प्रकार छे. मार्कण्डेय देवीपुराणनो चोथो अध्याय 'शक्रादय' अनुं दृष्टान्त छे. मधु अने कैटभ राक्षसोनो देवीओ वध कर्यो अनी प्रशंसा इन्द्र (शक्र) आदि देवोओ करी. चण्डीपाठनो आ अध्याय पण ओजस-आवेशपूर्वक गवाय छे. आम, मुख्य तात्पर्य अहीं ओ छे के जैनस्रोतनी रासकरूप गेय कथारचनाओने 'राससाहित्य' अवा वर्गमां ज मूकी देवाने बदले अनी कृतिओनो पण आख्यान, पद्यवार्ता वगेरेना प्रकार-स्वरूपमा ज मूकीने चर्चवा जोईओ. कलासाहित्यना शास्त्र सेक्युलर आर्ट्सना धोरणे ज थाय, अर्थात् कोई धर्मपन्थ Sect मां ज ओने न मूकी शकाय. धर्मपन्थ प्रमाणे, हेतु प्रमाणे कृतिना बाह्य अङ्गोमां ज केटलीक भिन्नता होय. दा.त. कृतिकर्तानुं ईश्वरस्तवन, ओनां गुरुवन्दन, कृतिहेतु, फलश्रुति वगेरे पन्थ-धर्मनी परम्पराओ जुदा होय अटलुं ज. भारतीय धोरणे वैदिक अने जैन बन्नेमां सरस्वती विद्यानी देवी छे ते समान होय, परन्तु वैदिकमां गणेश होय ते जैनस्रोतमां न होय, शिव-विष्णु वगेरेना स्थाने तीर्थङ्करवन्दना होय, लखनार साधु होय तो स्वाभाविक छे के अना ज्ञाति, अवटंक, गाम, मातापिता वगेरेनी विगत न होय परन्तु ओना स्थाने गुरु होय, गच्छ होय. फलश्रुतिमां पण अq केटलुक भिन्नत्व होय. परन्तु स्वरूप-दाखल आ ग्रन्थबन्धना बहिरङ्ग छे. अनुं अन्तरङ्ग तो समान छे अने ते ज स्वरूपनिर्णयमा लेवु जरूरी छे. जो के डॉ. भायाणी, डॉ. सांडेसरा, डॉ. के. का. शास्त्री, प्रो. अनन्तराय रावलना मनमां तो आ स्पष्ट छे अने तेमनां अभ्यासमां पण ओ जोवा मळे छे. जैनस्रोतनी अनेक रचनाओने अमणे मध्यकालीन लौकिककथामां ज मूकीने चर्ची छे. अनन्तराय रावल पण 'पद्यवार्ता'ना प्रवाहमां रासरूप कृतिओ मूकीने चर्चे छे. परन्तु हवेना आपणा मध्यकालना अभ्यासमां आ कामचलाउ अवा बृहत् कौंसने कौंस बहार काढी यथास्थाने मूकवा पर ध्यान अपार्बु अनिवार्य गणाय. खरेखर तो साहित्यसामग्रीनी जे मुख्य १. कथाश्रयी Narrative अने २. भावाश्रयी Lyrical जातिओ छे तेनी मूळ विभावना स्पष्ट करवी जोईओ अने
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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