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अनुसन्धान-७४
प्रयोगो छे. सम्पादकोए तेमने अशुद्ध समजीने कौंसमां करि(रइ) वगेरे सुधारा सूचव्या छे, पण तेवी जरूर नथी. करि, ओपि वगेरे रूपो दीव विस्तारनी बोलीनी छांटवाळां रूपो छे. अनमति (क. ३७), यम (क. ३७) जेवा शब्दो पण बोलीनी असर धरावे छे. क. ६८मां रहा', क. ८९मां 'पांगरा' छे त्यां रह्या, पांगर्या एवो सुधारो सम्पादकोए सूचव्यो नथी, ते योग्य ज कर्य छे. करि, ओपि व.मां पण एम ज समजवू जोइए. क. २८मां 'सामी' छे त्यां कौंसमां 'धर्मी' सूचित कर्यु छे, पण ते खोटुं छे. 'साहम्मी', 'सामी' थयुं छे. (बीजे ठेकाणे 'साहम्मी'नुं 'स्वामी' थयुं छे, अने ए गेरसमज आज सुधी चाली आवे छे.)
तिलकविजयजी कृत ११ रचनाओ परम्परागत स्तवन प्रकारनी छे. जैन हस्तलिखित भण्डारोमां प्रकीर्ण पत्रोमां आवा स्तवन-सज्झाय-पदोनो भण्डार भरेलो छे. मनिओ मोटा भागे शिक्षित होय अने यथाशक्ति-मति भक्तिभावनी अभिव्यक्ति माटे स्तवन वगेरे आश्रय लेता होय. आवी रचनाओमांथी ऐतिहासिक तथ्यो उपरांत ते-ते समयना श्रमण-श्रावक संघनी श्रद्धा भक्ति-स्थितिनां दर्शन पण थाय.
स्त. ४, क. ६मां 'राखे ज्यो' छे त्यां 'राखेज्यो' एम वांचq घटे. स्त. ६ क. ८मां “थोल' नहीं, 'थोभ' साचो पाठ छे. स्त. ८नी देशीमां 'हुंग' छे त्यां 'ट्रंक' शब्द होवो जोईए. स्त. १०मां क. ५मां 'तिमउं' छपायुं छे ते वाचनभूल छे. 'तिम तुं' वांचवें जोइए. १२मी कडीमां 'जिनकी रति' छपायुं छे; 'जिन कीरति' पाठ संगत थाय. ११मी रचनामां क. ५ मां 'या षरमरनां' छपायुं छे. अहीं 'याखर मरनां' पाठ संभवित छे. 'याखर' = आखर.
___'केटलांक पदो'मां वधु स्तवन/पद आपणी सामे आवे छे. नेमिजिनपदनी अंतिम कडीमां 'करमरूपी या' छे ते स्थाने 'करमरूपीया' साचो शब्द बने.
_ 'ट्रंक नोंध'मां नानी-नानी महत्त्वनी वातो रजू थई छे. स्वाध्यायर्नु आवृं अवान्तर फल संघने - अभ्यासीओने सहायक थाय - थर्बु जोईए.