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________________ जान्युआरी - २०१८ ७७ छपायुं छे त्यां 'माव' जोईए. एनी ज पहेली कडीमां प्रेसभूलथी 'कहयइ' छपायु छे, त्यां 'कइयइ' जोइए. 'च सि मा' - आ त्रण अक्षरोनी एक सो वार हाजरी जेमां गोठवाई छे ते स्वाध्याय मनोरंजक अने उपदेशक तो छ ज, पण गूर्जरभाषामां आ प्रकारनी शब्दचातुरीनी कदाच आ एकमात्र स्वतन्त्र कृति हशे. ज्ञानभण्डारोमां आवी अन्य रचनाओ पण हजी पडी होय तो ना नहि. ___ गूजराती-हिन्दीमां आवी शब्दरमत धरावती उक्तिओ । पंक्तिओ जो के मळे छे, पण सम्पूर्ण । स्वतन्त्र कृति प्रायः आ सर्वप्रथम हशे. 'दीवानथी दरबारमां, छे अंधारं घोर'. ए ज पंक्ति फेरवीने जूदा अर्थमां : 'दीवा नथी दरबारमां, छे अंधारूं घोर.' कविश्री दलपतरामना 'मिथ्याभिमान' नाटकमां एक श्लोकमां आवी रमत थई छे : "ले राख ले राख तुज स्वामी दाखे, ले राख ले राख मुज स्वामी भाखे" अहीं पहेली वारमा राख = मूक, राखी ले (घरेणुं) एवो अर्थ छे. बीजी वारमां राख = 'भस्म' अर्थ छे. एक जूनुं हिंदी कवित : "तीन लोक कू तारने कु हजीरा-मसीत हय". नवाबना कोपथी बचवा माटे आ प्रमाणे बोल्या पछी कविए पोतानी श्रद्धा ए ज पंक्तिमां आ रीते व्यक्त करी : "तीन लोक कू तारने कु हजी राम-सीत हय." संस्कृतभाषामां आवी शब्दलीला करवा माटे व्याकरण, कोश, समास आदिनी मदद मळी शके छे, परन्तु अन्य भाषाओमां आवी सुविधा अति अल्प ज मळे; छतां प्रस्तुत कृतिमां च-सि-मा आ त्रण अक्षरोनुं पुनरावर्तन एक सो वार निभावीने विक्रम सा छे. कृतिमां जूनी गुजरातीना क्रियापदोनी भरमार छे, जेना धातुओ अमुक तो म.गु.को.मां पण नोंधायेला नथी. कृतिमांना घणा शब्दो अस्पष्ट रहे छे. 'मुनिविजयजी उपाध्यायनो रास' - आ कृति द्वारा हीरयुगना एक वधु श्रमणवर्यनी जीवनी प्रकाशमां आवे छे. कृतिना पाठमां करि, ओपि, कहि एवा
SR No.520575
Book TitleAnusandhan 2018 04 SrNo 74
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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