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________________ २६ अनुसन्धान-७४ ढालः श्लोकः जगधणी पूजतां विविध फूलै, सुरवरा ते गिणै क्षण अमूलै । खांति धरी मानवा जिनप पूजै, तसु तणां पाप संताप धूजै ॥४|| काव्यः विकचनिर्मलशुद्धमनोरमै-विशदचेतनभावसमुद्भवैः । सुपरिणांमप्रसूनघनैर्नवैः, परमतत्त्वमहं यज[या]म्यहम् ॥५॥ है ही परमात्म० पुष्पं यजामहे स्वाहा ॥३॥ अथ धूपः ॥ दूहाः कृष्णागर मृगमद तगर, अंबर तुरुप्क लौबांन । मेलि सुगंध घनसार घन, करो जिन-मुख धूपदांन ॥१॥ धूपघटी जिम महमहै, तिम दहै पातिकवृंद । अरति अनादिनी जावै, पावै मन आणंद ।।२।। जे जिन पूजै धूपै भवकूपै फिरी तेह । नावै पावै ध्रुव घर, आवै सुख अच्छैह ।।३।। श्लोकः जिनघरै बासतां धूप पूरै, मिच्छत्त दुर्गंधता जाय दूरै । धूप जिम सहज ऊध्र्वग स्वभावै, कारका उच्चगतिभाव पावै ॥४॥ काव्यः सकलकर्ममहेन्धनदाहनं, विमलसंवरभावसुधूपनं । अशुभपुद्गलसंगविवर्जतां, जिनपतेः पुरतोऽस्तु [सु]हर्षतः ॥५॥ ही परमात्मने० धूपं यजामहे स्वाहा ॥४|| अथ दीपपूजा ॥ दहाः मणिमय रजत ताम्रना, पात्र करी घृतपूर । वर्ति सूत्र कोसंभनी, करो प्रदीप सनूर ॥१॥ ढालः मंगलदीप बधावौ गावौ जिनगुण-गीत । दीपतणी जिम आलिका, मालिका मंगल नित ॥२॥ दीपतणी शुभज्योति द्यौति जिनमुखचंद । निरखी हरखो भविजन जिम लहौ पूर्णानंद ॥३॥ श्लोकः जिनग्रहै दीपमाला प्रकासैं, तेहथी तिमिर अज्ञान नासै । निजघटै ज्ञानज्योती प्रकाशै, जेहथी जगतणा भाव भासै ॥४॥
SR No.520575
Book TitleAnusandhan 2018 04 SrNo 74
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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