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________________ २० अनुसन्धान-७४ सत्तरभेदपूजाविधिः ॥ राग सामेरी चंदवदन वीतरागर्नु अवलोकी चंदन कीजइ रे । अंगतणउ नीमाल निवारी, निरतिइं न्हवण करीजइ रे ॥ केवली वचन ए दीपंता दीसइ, सतरे भेदे पूजानी विधि पंचम गणधर भासई रे ॥१॥ द्रूपद ॥ कनक कलस निरमल भरी अनइ क्षीरसमद्रह नीर । न्हवण करंता नाथनई रोमंचीइ शरीर । स्वामी रोमंचीइ शरीर स्वामी रोमंचीइ शरीर जिन वांदुं त्रिभुवनवीर रे ॥१॥ प्रथम पूजा ॥ बावन चंदन अतिभो, प्रभु-पाए परिघल चरचुं रे । कुंकुमसिउं घनसार घसीनइ, अंगि विलेपन अरचुं रे ॥२॥ केव० ॥ अंग विलेपन उकली अनइ रचना ते कीजइ रंगि । प्रभु-चलणे कर फरसतां, ऊलट माइ न अंगि ॥ स्वामी ऊलट माइ न अंगि, जिनपूजा छइ बहु भंगि रे ॥२।। द्वितीय पूजा ॥ (३) पवित्र करि सुपहिरामणी, लई क्षोमयुगल सुकुमालं रे । इंद्र ठवइ जिम ऊजलूं, परमेसर खंधि विशाल रे ॥३।। केव० ॥ इं(च)द्रकिरण जिम ऊजलां, सोहइ ते आसो मासि । तिम झलकंती [आ? ] पीइ, पहिरामणी उल्लासि ॥ स्वामी पहिरामणी उल्लासि, अति ओपइ ते स्वामी पासि रे ॥३॥ तृतीय पूजा॥
SR No.520575
Book TitleAnusandhan 2018 04 SrNo 74
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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