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अनुसन्धान-७४
सत्तरभेदपूजाविधिः ॥
राग सामेरी
चंदवदन वीतरागर्नु अवलोकी चंदन कीजइ रे । अंगतणउ नीमाल निवारी, निरतिइं न्हवण करीजइ रे ॥ केवली वचन ए दीपंता दीसइ, सतरे भेदे पूजानी विधि पंचम गणधर भासई रे ॥१॥
द्रूपद ॥
कनक कलस निरमल भरी अनइ क्षीरसमद्रह नीर । न्हवण करंता नाथनई रोमंचीइ शरीर । स्वामी रोमंचीइ शरीर स्वामी रोमंचीइ शरीर जिन वांदुं त्रिभुवनवीर रे ॥१॥ प्रथम पूजा ॥
बावन चंदन अतिभो, प्रभु-पाए परिघल चरचुं रे । कुंकुमसिउं घनसार घसीनइ, अंगि विलेपन अरचुं रे ॥२॥ केव० ॥ अंग विलेपन उकली अनइ रचना ते कीजइ रंगि । प्रभु-चलणे कर फरसतां, ऊलट माइ न अंगि ॥ स्वामी ऊलट माइ न अंगि, जिनपूजा छइ बहु भंगि रे ॥२।। द्वितीय पूजा ॥
(३) पवित्र करि सुपहिरामणी, लई क्षोमयुगल सुकुमालं रे । इंद्र ठवइ जिम ऊजलूं, परमेसर खंधि विशाल रे ॥३।। केव० ॥ इं(च)द्रकिरण जिम ऊजलां, सोहइ ते आसो मासि । तिम झलकंती [आ? ] पीइ, पहिरामणी उल्लासि ॥ स्वामी पहिरामणी उल्लासि, अति ओपइ ते स्वामी पासि रे ॥३॥
तृतीय पूजा॥