SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६ अनुसन्धान-७४ अथवा कोई परिचित विद्वाने ए श्लोकोनो संग्रह करी लीधो हशे श्लोक ७मां अलाउद्दीननुं अने श्लोक ८मां कुमारपाल महाराजानुं नाम जोवा मळे छे. दरेक श्लोक समस्यापूर्तिनो छे. कोई एक विचित्र कल्पनाने एक चरणमां गूंथी, तेने बंधबेसता बाकीना त्रण पाद तत्काल रची आपवानुं आह्वान थाय. ए असम्भव के अशक्य कल्पनानुं चित्रण करवामां उत्प्रेक्षा अलङ्कार मोटा भागे मददरूप बने. प्रस्तुत संग्रहमां श्लोके श्लोके उत्प्रेक्षाओ भरी पडी छे. एक ज पंक्ति आधारित ३-३ के ४-४ पादपूर्तिओ पण आमां जोवा मळे छे. अपवादरूपे क्यांक प्रश्नमाला, क्यांक उपदेश, तो क्यांक प्रहेलिका पण जोवा मळे छे. आ संग्रह श्रीकुलमण्डनसूरिनी प्रत्युत्पन्न मति, विद्वत्ता अने विनोदप्रियतानां सुन्दर दर्शन करावे छे. रचना विद्वद्भोग्य छे, अने तेथी विद्वानाने प्रसन्नकर बनशे. प्रतिनो अनुक्रम अंक लखवानुं रही गयुं छे. आ कृतिनी प्रतिलिपि आपवा बदल नीतिविजयजी शास्त्रसंग्रह, अमर जैनशाळाना कार्यवाहकोनो आभार. * समस्या श्लोकाः ("धनु:कोटौ भृङ्गस्तदुपरि गिरिस्तत्र जलधि:'-) १. फणीन्द्रो यद्वक्रीकृतनिजतनुस्तत्र भगवान् जिनः पार्श्वो भूयः फणसमुदयश्चोपरि तत: । तदूर्ध्वं नीरौघः कमठरचितस्तत्र घटते धनुः कोटौ भृङ्गस्तदुपरि गिरिस्तत्र जलधिः ॥ २. धनुश्चन्द्रः सोऽयं भुवनजयिनश्चित्तजनुषः कलङ्कस्तत्रायं मधुकरति मेघस्तदुपरि । गिरीन्द्रस्तत्रायं तदुपरि खगङ्गात्र घटते धनुः कोटौ० ॥ ३. प्रसूनाग्रालीने मरकतधिया काऽपि मधुपे, कुचं मुग्धा दध्रे प्रियविरहसन्तापविधुरा । अमुञ्चद् बाष्पौघं तदुपरि तदा पुष्पधनुषो, धनुः कोटौ ० ॥
SR No.520575
Book TitleAnusandhan 2018 04 SrNo 74
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy