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सप्टेम्बर - २०१७
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बने. श्लो. २४मां "रालक्ष्य'ने स्थाने 'रालिख्य' पाठ बेसे छे. श्लो. ९४ना त्रीजा चरणनो खुटतो शब्द 'कलितः' ज छे; यमकना सन्दर्भे पण ए ज आवी शके छे अने अर्थना सन्दर्भे पण गोठवाय छे. एक 'कलितः'नो अर्थ 'कलिकालथी', बीजानो अर्थ युक्त / शोभित (-परमया रमया कलितः). श्लो. ९६मां 'खेदोद' छपायुं छे त्यां 'स्वेदोद' जोईए. श्लो. १३५नुं प्रथम चरण आम विचारी शकाय :
"साहित्याम्बुनिधिः सुबुद्धिजलधिः सत्तर्कलीलावधिः" (हरिभद्रसूरि साहित्यना अम्बुनिधि, सुबुद्धिना जलधि अने सुन्दर तर्कनी लीलाना अवधि-पराकाष्ठा समान हता.)
बीजी प्रशस्ति महदंशे शुद्ध छे. स्थलनामो, व्यक्तिनामो तथा कार्यसूचि ठांसी-ठांसीने भरेलां होवा छतां काव्यरस जळवायो छे.
पृ. ८३ पर 'कहो कहो रे पंडित...' ए हरियालीनो उकेल पाछळथी सूझ्यो छे : मंदिर अने धजा.
'अषाढाभूति सतढालियु' रसाळ रासकृति छे. व्याख्यानमां आवा रासो गवाय अने तेनां विवरण थाय त्यारे श्रोताओने रसल्हाण थई रहेती; ए दृश्य आ लेखके बालपणमां जोयुं छे. रासनी वाचना प्रायः शुद्ध छे.
'वेदों का अपौरुषेयत्व' अने 'एक भ्रष्ट पाठे...' बने लेख अभ्यासीओने आनन्ददायक बनशे.
जैन देरासर नानी खाखर-३७०४३५
जि. कच्छ, गुजरात