SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्टेम्बर - २०१७ ७९ बने. श्लो. २४मां "रालक्ष्य'ने स्थाने 'रालिख्य' पाठ बेसे छे. श्लो. ९४ना त्रीजा चरणनो खुटतो शब्द 'कलितः' ज छे; यमकना सन्दर्भे पण ए ज आवी शके छे अने अर्थना सन्दर्भे पण गोठवाय छे. एक 'कलितः'नो अर्थ 'कलिकालथी', बीजानो अर्थ युक्त / शोभित (-परमया रमया कलितः). श्लो. ९६मां 'खेदोद' छपायुं छे त्यां 'स्वेदोद' जोईए. श्लो. १३५नुं प्रथम चरण आम विचारी शकाय : "साहित्याम्बुनिधिः सुबुद्धिजलधिः सत्तर्कलीलावधिः" (हरिभद्रसूरि साहित्यना अम्बुनिधि, सुबुद्धिना जलधि अने सुन्दर तर्कनी लीलाना अवधि-पराकाष्ठा समान हता.) बीजी प्रशस्ति महदंशे शुद्ध छे. स्थलनामो, व्यक्तिनामो तथा कार्यसूचि ठांसी-ठांसीने भरेलां होवा छतां काव्यरस जळवायो छे. पृ. ८३ पर 'कहो कहो रे पंडित...' ए हरियालीनो उकेल पाछळथी सूझ्यो छे : मंदिर अने धजा. 'अषाढाभूति सतढालियु' रसाळ रासकृति छे. व्याख्यानमां आवा रासो गवाय अने तेनां विवरण थाय त्यारे श्रोताओने रसल्हाण थई रहेती; ए दृश्य आ लेखके बालपणमां जोयुं छे. रासनी वाचना प्रायः शुद्ध छे. 'वेदों का अपौरुषेयत्व' अने 'एक भ्रष्ट पाठे...' बने लेख अभ्यासीओने आनन्ददायक बनशे. जैन देरासर नानी खाखर-३७०४३५ जि. कच्छ, गुजरात
SR No.520574
Book TitleAnusandhan 2017 11 SrNo 73
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy