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सप्टेम्बर - २०१७
ते पद्योनी पछी अमे प्रश्नचिह्न कर्यु छे. विद्वानो तेना अर्थ तरफ अमारुं ध्यान दोरशे तेवी आशा छे. कृतिसम्पादनमां वाचकोनी सरळता माटे अमे व्यर्थ अनुस्वारोने काढी नाख्या छे. साथे साथे क्लिष्ट शब्दनो कोश पण अहीं साथे ज रजू को छे. कृतिकार परिचय :
श्रीसोमविमलसूरिजी मूळ खम्भातना कंसारी गाममां पोरवाळ शाह रूपवंत - अमरादेवीना पुत्र हता. तेमनुं गृहस्थपणा, नाम हतुं जसवंत. सं. १५७४मां तेमणे श्रीहेमविमलसूरिजीना हाथे मुनिसौभाग्यहर्षसूरि पासे दीक्षा ग्रहण करी, 'मुनि सोमविमल' एवा नामथी गुरुनिश्रामां रही घणा ग्रन्थोनो अभ्यास कर्यो. गुरुभगवन्ते पद-योग्य जाणी तेमने सं. १५९० मां गणिपद, १५९४ मां पंन्यासपद, १९९५ मां उपाध्यायपद तथा सूरिपद आप्यु, तेम ज सं. १६०५मां तेमने गच्छनायकपद प्राप्त थयु. तेमने आनन्दसोमसूरि, हंससोमसूरि, देवसोम गणि वगेरे २०० शिष्योनो परिवार हतो. गौतमपृच्छा (टब्बो), श्रेणिकरास, नवतत्त्वालोक वगेरे घणा ग्रन्थोनी तेमणे रचना पण करी छे. प्रस्तुत कृति पण तेमनी ज रचना छे जे तेमणे गच्छनायकपदे बिराज्या बाद रची छे.
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॥ ६०॥ श्रीसोमविमलसूरिगुरुभ्यो नमः ॥ प्रणमु परम पुरुष परभावि, मनोरथ सीझइ जास प्रभावि, अवइरल वाणि सदा वरसती, व, सरसति मा[त] वर सती मोटुं भारतिनुं भंडार, शब्दरयणर्नु जिहां नहीं पार, जेहथी लहीइ अरथ अनेक, चसिमां शब्द हुं लेइ एक शब्द अमूलिक अर्थ अनंत, ते भाखि जाणइ भगवंत, मझ मूरखनइ करवा अर्थ, इच्छा छइ पणि छठं असमर्थ करिया अर्थ संगय गमे केतले, ति(ते) कविजननइं हुं पगतले, श्रीजिन सहिगुरु सरसति माय, पामो तेह तणु सू(सु)पसाय कहिसु अर्थ हुं एकसू(१००) एक, लोकभाषाई तास विवेक, बोल कया केता भाखना, सू(सु)णज्यो सज्जन एक मना चसिमां मंत्र जीवे तुझ भणउ, चसमा धरीनइ वांचे घणउ, माचसि मा आठइ मद साथि, संचसि मा पांमी धन हाथि राचसि मा जीव किस्यइ कुकर्मि, ठेचसि मा तुं कहिनइ मर्मि, टांचसि मा मदिरादिक दक्ष, सांचसि मा जे भुंडउ वृक्ष
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