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________________ २४ अनुसन्धान-७३ मन-शुद्धि शील पालउ निरमलूं रे, सदा सीता जिम जाण रे, वाहर कीधी रामइं जिणि समइ रे, समुद्र तणा पासाण रे..... एह असंभव दीसइ वातडी रे, जोउ जोउ जाण विमास रे, सानधि करस्यइ सुरवर तेहनु रे, जे करइ सील अभ्यास रे. अगनि थइ रे सीलइ सीयली रे, सील सिणगार सरीर रे, बांधीनइ काचइ तातणि चालणी रे, काढ्यउ सुभद्रा नीर रे. सेठ सुदरसण गुणवंत जाणज्यो रे, लागा अंगि प्रहार रे, सील प्रभावई सघला ते थया रे, रतन जडित सिणगार रे..... सील प्रभावइं जोउ श्रीमती रे, थइ माला कुसुम भुजंग रे, पामइ ते कर कमलावती रे, नवपल्लव नवरंग रे..... भवियण जाणि मनि एहवउ रे, सूधउ सदा धरउ सील रे, श्रीविनयदेवसूरि इम कहइ रे, जिम लहउ सिवसुख नील रे..... ___ इति शीलभाषा सोवन मल संगति तजइ रे, तेहनउ बहुलउ व्याप रे, इम इंधण घणा परजलइ रे, अगनि तणउ लही ताप रे..... तिम तप पाप करम खपइ रे, जीवडउ निरमल थाइ रे, बार प्रकार छइ तप तणा रे, मुगतिइं जेहथी जाइ रे..... सरवर मोटउ जलि भर्यउ रे, शोषइ आतप योग रे, प्राणी पाप घणा खपइ रे, तिम तपनइ संयोग रे..... हरिकेशी बल साधुनी रे, तपि सेवा करइ देव रे, च्यार हत्या शुद्धि जिणइ लही रे, दढप्रहार तिणि खेव रे..... अरजुन धन अणगारना रे, पगि लागू निसि दीस रे, जिम मनवंछित सवि लहूं रे, भणइ श्रीविनयदेवसूरीस रे..... इति तपभाषा
SR No.520574
Book TitleAnusandhan 2017 11 SrNo 73
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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