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________________ सप्टेम्बर - २०१७ २३ विनयदेवसूरिकृत दान-शील-तप-भाव भाषा - सं. उपा. भुवनचन्द्र श्रीविनयदेवसूरि नागोरी वड तपगच्छना युगप्रधान दादासाहेबश्री पार्श्वचन्द्रसूरिजीना शिष्य छे अने ब्रह्म, ब्रह्मो के ब्रह्मर्षि एवा उपनामथी प्रसिद्ध छे. सुधर्मगच्छना प्रवर्तक तरीके तथा कवि तरीके विद्वज्जगतमां तेओ जाणीता छे. 'जैन गूर्जर कविओ' तथा 'ऐतिहासिक रास संग्रह'मां आ कविना जीवन-कवन विषे घणी विगतो नोंधाई छे. आ कविनी चार अप्रगट लघु रचनाओ एक प्रकीर्ण पत्रमा मळी आवी ते सम्पादित करीने अहीं आपी छे. लोकभाषामां रचना होय तेने 'भाषा' कहेता, पछी 'भाषा' एटले 'ढाळ' एवो अर्थ पण थवा मांड्यो. आम, आ चार ढाळ - चोढाळिया प्रकारनी कृति छे. विषय जाणीतो छ पण प्रस्तुति काव्यात्मक अने लोकभोग्य छे. श्री जिन धर्म भाखइ चिंहु परइ रे, दान सील तप भाव रे, दान वडउं छइ धुरि तेहनइ रे, जेहनउ महाप्रभाव रे....... दान दीजइ रे अवसर आदरइ रे, जस हुइ दान अनंत रे, सालिभद्र जिम लीला लहइ रे, जोउ कुमर सुबाहु वृतांत रे... उंचा नइ गाजइ जलधर दानथी रे, समुद्र गया रसाताल रे, नीर न (ज?) खारुं केइ नइ उपगरइ रे, ए परि कृपण निहाल रे..... मेह विणू वूठा दीसइ सामला रे, वूठा ते भजइ उजास रे, जोउ नइ एहवो दान पटंतरउ रे, दानइं ते बइरी हुइ दास रे..... दातार हुइ जगि वाहलउ रे, जिम सहू आव्यउ वंछइ मेह रे, समुद्र न वंछइ कोइ आवतउ रे, जोउ विचारी एह रे..... दान न देस्यइ संपति जे लही रे, ते पछतास्यइ नरनारि रे, श्रीविनयदेवसूरि इम कहइ रे, दानइं ते पुहचइ भवपारि रे..... इति दानभाषा ।
SR No.520574
Book TitleAnusandhan 2017 11 SrNo 73
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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