________________
जून २०१७
४. देशै नीपति क्युं नही, क्युं न थडे लोहार; किम वसतां मुंहगी विकै, ऊत्तर एक प्रकार. (घण नही)
समस्यापूर्ति
१.
-
१.
‘थारी में यूं ठहरात न पारौ' इति समस्या पूर्यते दूरसौं दूरि मिलै छिनमैं गहि लेत है एक किनारौ, भौरसैं खात फैलात चिहुं दिसि नैं कुअरै नहि होत निनारौ, एक न ठौर कहौ ठहरात गह्यौ नहि आवत हाथ अतारौ, युं तिस नामैं भमे चित चंचल थालीमें ज्युं ठहरात न पारौ.
अन्यश्च
मैं हरवीरज धीरजकारण गोरी कौं प्राण नि हार्थं पियारौ, मैं कियो कारितकेय कुमार करूं उपगार सु धातु सुधारौ, कासीमें होइगी हांसी हमारी निकारि बनात लिपि सिही डारौ, त्रिधा त्रिकूट त्रिजाति मैं तार हुं थारीमें युं ठहरात न पारौ.
-
-
"काकैं कैं दीठे कुटुंब ही दीठौ " इति समस्या मोहनभागे जलेबीय लडूअ घेवर तामैं कहो कहा मीठौ, वाद भयो प्रमसी कहै नागर न्याउकुं जंगल जट्ट प्रतीठौ, सो कहै बूरै कैं पूर भये सब ताकौ भाई गुड लाल मजीठौ,
सो गुड दीठौ है अति मीठौ तौ काकैं कैं दीठे कुटुंब ही दीठौ.
अथ 'मत्सी रोदिति मक्षिका च हसति ध्यायन्ति वामभ्रुवः' इति व्याससतीदासदत्तं समस्यापदं पूर्यते श्रीकृष्णोऽम्बुधितश्चतुर्दश भृशं रत्नानि निर्वासयामासाऽनेहसि तत्र सक्तसफर : शुण्डाघटो निःसृतः । स्वस्वभ्रंशवशादपूर्वलभनाद्धाति: (?) प्रतीतः क्रमान्मत्सी रोदिति मक्षिका च हसति ध्यायन्ति वामभ्रुवः ॥ २. राजन्नाजिविधौ त्वया निजरिपुर्व्यापादितस्तच्छिरोलात्वोड्डीय जगाम गृध्र उत तद् दृष्टं च नद्यां वहत् । वार्घट्टे किमिति स्त्रियस्तिमियुतं तन्निश्चकर्षुस्तदा मत्सी रोदिति मक्षिका च हसति ध्यायन्ति वामभ्रुवः ॥
-
७७