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________________ विहंगावलोकन-अङ्क ७१ - उपा. भुवनचन्द्र जैन ज्ञानभण्डारोमा स्तोत्र-स्तुति-स्तवननो जाणे अक्षयभण्डार छे. प्रभुस्तुति साधु-श्रावक बन्नेनी आराधना साथे जोडायेली वस्तु छे. भावोल्लास माटे नवां नवां स्तोत्र सहायक बने छे. जैन संघमां अध्ययन-अभ्यास-शिक्षणवातावरण पण उच्च स्तर- रहेतुं आव्युं छे – खास करीने त्यागी वर्ग. एटले सर्जन- स्तर पण सहेजे वधारे ऊंचुं होय. आम, लोकभोग्य अने उपयोगी सर्जन तरीके स्तोत्रस्तवन साहित्य, निर्माण वधु होय ए स्वाभाविक छे. ___अनु० ७१मा प्रथम क्रमे प्रकाशित 'शान्तिस्तव' गीतिकाव्य छे अने एक समर्थ कविनी रचना छे. श्रीजयवंतसूरि रसकवि हता अने प्रस्तुत रचनामां तेमनी ए मुद्रा प्रखर रूपे अङ्कित छे. सम्पादके एक वातनी नोंध नथी लीधी, अने ते ए के कविए आ लघु स्तोत्रमा नवेय रस समाव्या छे. शृङ्गार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, अदभुत, शान्त - ए नव रसोनी हाजरी कई रीते छे ते अहीं जोई लईए - प्रथम चार श्लोको प्रस्तावना के भूमिका जेवा छे. पछी एक-बे के त्रण श्लोकोमा एक-एक रसनो भाव दृश्यमान थाय छे. अमुक रसनां नाम पण क्यांक डोकाय छे, बाकी उद्गारो / रूपको । कल्पनो द्वारा ते-ते रसनो निर्वाह थयो छे. ४था पद्यमां 'रीतिरताः' शब्द द्वारा 'रीति'नो सीधो उल्लेख पण कर्यो छे. पद्य ५मां 'कामदेवना गर्व- खण्डन' वगेरे शब्दो शृङ्गारना व्यञ्जक छे. पद्य ६मां वित्रासन-भयनी वात थई छे. ७-८-९ ए त्रण पद्योमां विजयनां कल्पनो द्वारा वीररस चूंट्यो छे. १०-११ ए बे पद्य कठोरता अने वैरिना नाशना वर्णन द्वारा रौद्र रस पोषे छे. १२-१३ बे पद्य प्रभुनी मनोहरता ऊपसावी विस्मय-हास्यनो भाव जगाडे छे. १५मा पद्यमां भगवान पर द्वेष करनारा पर करुणाना उद्गार छे. अहीं 'करुण'शब्द पण हाजर छे. १६मुं पद्य बीभत्स रसनी लागणी जन्मावे छे. १७मा पद्यमां भगवान अद्भुतसागर छे एम कही अद्भुत रसनुं निरूपण कर्यु छे. छेल्लां पद्योमा शान्तरस चूंटायो छे. 'शान्ति'शब्द पण योज्यो छे.
SR No.520573
Book TitleAnusandhan 2017 07 SrNo 72
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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