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________________ जून - २०१७ ११३ वेद अपौरुषेय ही हैं। बन्दी - वेद नित्य हैं यह बात ही निरर्थक है । वेद में वशिष्ठ ऋषि और विश्वामित्र का कलह वर्णित है । दाशराजाओं के युद्ध का भी उसमें निर्देश है । स्पष्ट है कि ये घटनाएँ जब घटित हुई तब या उसके अनन्तरकाल में ही उनका जिक्र वेद में किया गया है । यदि वेद नित्य होते, तो उन किसी समयविशेष में घटित घटनाओं का वर्णन उनमें कैसे मिलता ? इससे यह सिद्ध होता है कि वेद अनित्य हैं और पौरुषेय हैं । अपौरुषेयत्व की चर्चा करते वक्त जैन दर्शनकारों के समक्ष एक प्रश्न अवश्य उपस्थित होता है, और वह है जैन मूल आगमस्वरूप द्वादशाङ्ग गणिपिटक की अनादिता का । जैन मन्तव्य अनुसार परम आप्तपुरुषभूत कोई भी तीर्थङ्कर वही उपदेश देते हैं जो कि उनके पूर्व तीर्थङ्करों के द्वारा प्रज्ञप्त किया जा चूका है । कोई भी तीर्थङ्कर नया कुछ भी नहीं कहते, उनकी सम्पूर्ण वचनधारा पूर्व वचनधारा का अनुसरण ही करती है । तीर्थङ्करों के उपदेश का सङ्ग्रह ही बारह विभागों में विभक्त होकर 'द्वादशाङ्गी' कहलाता है, जो कि प्रत्येक तीर्थङ्कर की अपेक्षा अलग-अलग होते हुए भी तत्त्वतः समान होता है । यह द्वादशाङ्गी ही जैनदर्शन में 'वेद' की तरह सम्माननीय व सर्वथा प्रमाणभूत गिनी जाती है । तात्पर्य यह निकलता है कि कोई तीर्थङ्कर ऐसे हुए ही नहीं कि जिन्होंने पूर्व तीर्थङ्करों की वचनरचना का अनुसरण किया ही न हो और न तो ऐसी द्वादशाङ्गी कभी हुई कि जो पूर्व द्वादशाङ्गी से समानता न रखती हो । ऐसी स्थिति में द्वादशाङ्गी को अनादि ही समझनी होगी । और जो अनादि हो वह पौरुषेय कैसे हो सकती है ? स्वयं जैन शास्त्रकारों ने द्वादशाङ्गी को ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षर, अव्यय एवं नित्य रूप में वणित करके उसकी अपौरुषेयता की ओर ही सङ्केत किया है। इस स्थिति में वेदों की अपौरुषेयता से इसमें अन्तर क्या रहता है ? । ___ इस प्रश्न का समाधान अनेकान्त दृष्टि से ही समझा जा सकता है। शास्त्र के दो पक्ष हैं - शब्दपक्ष और अर्थपक्ष । अर्थ की अपेक्षा सब तीर्थङ्करों का उपदेश समान होने से द्वादशाङ्गी भी समान ही होती है । तात्पर्य, तीर्थङ्कर
SR No.520573
Book TitleAnusandhan 2017 07 SrNo 72
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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