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________________ निवेदन 'संशोधन' नी मूळभूत प्रेरणा कई ? अने, संशोधन ते संशोधन क्यारे बने ? पहेला प्रश्ननो उत्तर छ : सत्यशोधन. शोधक ते, जेनं चित्त निरन्तर सत्यने गवेषतुं होय. तेवा चित्तने, प्रवर्तमान के प्रचलित वात, विचार, मान्यता के परम्परामां कशीक गरबड प्रतीत थाय त्यारे, ते, गरबड अने तेनां निदानोने शोधे छे - शोधवा मथे छे; अने पछी तेने बदले ते जग्याए, जे वात के विचार योग्य रीते बंधबेसतां आवतां जणाय तेनी, सप्रमाण । साधार, स्थापना करवाने उद्युक्त बने छे; आ आखीये प्रक्रियामां खोवायेला । दटायेला / झंखवायेला सत्यनुं शोधन अने पुनःस्थापन - ए ज तेने माटे प्रेरक बळ बने छे. ज्यारे आवी गवेषणा अने पुनःस्थापनानी तत्परता तथा त्रेवड नथी होती, त्यारे तेवा लोको द्वारा थतुं संशोधन ए संशोधन तो नथी ज बनतुं, बल्के एक उपहासपात्र अथवा उपेक्षापात्र वैतरूं-वहीतरुं बनीने रही जाय छे. संशोधक जो साचुकलो होय तो सौ पहेलां ते आत्मप्रतीतिथी सज्ज होय; परिश्रम, वांचन, चिन्तन - आ बधुं तेनी पोतीकी मूडी समान होय; आळस अने अनुदारतापूर्ण आग्रह - बेउथी ते वेगळो रहेतो होय; परम्परामां के संशोधनमां - क्यांय पण, पोताना हाथे के अन्य द्वारा, प्रवेशेली के प्रवेशती गलत धारणाओ परत्वे ते सतत सतर्क होय, अने तेने उलेचवा जेटली निर्भीकता ते धरावतो ज होय. आवो माणस जे संशोधन करे ते मोटा भागे हीरनी गांठ पर तेलना टीपा समुं बनी रहेतुं होय छे. एना संशोधनने, पछी, कोई पडकारी के खोटं ठरावी शके नहि. तेनुं हथियार कहो के ओजार एक ज होय : प्रमाणो. प्रमाणपुरःसर ज तेनां प्रतिपादन होय, अने तेने तेना करतां वधु मजबूत अने नवीन प्रमाणो दर्शावीने कोई पडकारे तो तेनो तत्क्षण स्वीकार करवानी तेनामां सज्जता होय.
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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