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________________ ओक्टोबर-२०१६ २८७ पार्वती' एवी उ० प्र० शाहे आपेली ओळखने तेमणे 'किरातवेशा भवानी' एवं साचं अभिधान आपेलं. अहीं अनुक्रमे नागदमन अथवा कालियदमन तरीके जाणीती छत, पशुवराहनां शिल्प अने कल्याणत्रयनी चर्चा करी छे.. गुजरातनां मन्दिरोमां नागदमननां वितानो सामान्य रीते समतल छतमां जोवा मळे छे (सर० नाणावटी अने ढांकी १९६९, पट ६४). वितानो विशे सविगत माहिती आपता ग्रन्थ अपराजितपृच्छा नां वितानप्रकरणोमां अलबत्त नागदमन विशे कोई निर्देश नथी, पण एना ज द्वारावतीलक्षणाध्यायमां 'विताने गोकुलोद्भाव कालीयस्यायभिदायम्' एवो पाठ मळे छे (२१८. ३६ गद्य), जे स्पष्ट बतावे छे के आ लोकप्रिय रूपावर्तथी शास्त्रकारो अजाण्या नहोता. ए ज धाटीए लखायेला पशुवराह विशेना लेखमां तेओ बतावे छे के छेक गुप्तकाळथी देखा देता पशुवराहनां शिल्प अत्यन्त जाणीतां होवा छतां अने सारा प्रमाणमां प्राप्त थता होवा छतां शास्त्रोमां एना सन्दर्भ सांपड्या नहोता. ए सन्दर्भ अपराजितपृच्छा मांथी शोधवानुं श्रेय एमने जाय छे : ‘पादेन वा त्रिभागेन न्यूनः स्याद् वासुदेवकः । आदिमूर्त्यर्धभागेन वाराहस्य तथोदयः,' अलबत्त अहीं निर्देश पशुवराहनो छे के नृवराहनो ते स्पष्ट थतुं नथी. सद्भाग्ये विश्वकर्माना वास्तुशास्त्र मां एनो आपणने असन्दिग्ध पाठ मळे छे : 'मूलनायकहीनं तु सूकरं कारयेत्ततः'. अने पछी आगळ कहे छे के, 'सूकरो मध्यतः स्थाप्य कार्या सुरमयी तनुः' तो वास्तुविद्या पण जणावे छे के, 'मध्ये तु सूकरः स्थाप्यः सर्वदेवमयः शुभः' कहेवानी भाग्ये ज जरूर होय के वराहना देह उपर देवताओनी आकृति उत्कीर्ण करवामां आवती होवानो आ पुरावो खूब महत्त्वनो छे. आम, पशुवराहना मूर्तिविधाननो शास्त्रीय आधार एमणे आपणने संपडावी आप्यो. ____ मध्ययुगमां, विशेषतः तेरमी अने पंदरमी सदी दरम्यान, रचायेला जैन साहित्यमा वारंवार कल्याणत्रयना उल्लेखो मळे छे. आ कल्याणत्रय ते दीक्षा, केवळज्ञान अने निर्वाणना त्रिकनुं स्थापत्यकीय प्रतिविधान छे. अभिलेखो अने साहित्यना, अने एमां पण परिपाटीओना, झीणा अभ्यासने अंते ढांकीसाहेब गिरनारस्थित कल्याणत्रय विशे आटलां तथ्यो तारवे छे : एर्नु निर्माण तेजपाल द्वारा करवामां आवेलुं; ए भगवान नेमिनाथने समर्पित हतुं; ए त्रण स्तरीय रचना हती, जेना दरेक स्तरमां चारे दिशामां चार मूर्तिओ कोरेली; एटले के कुल बार
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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