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अनुसन्धान-७१
आपोआप, ओळखाय छे अने स्वीकृति मेळवे छे. आपणो समाज तेमने न ओळखी शके तो तेथी ते समाजनी विद्या अने विद्यावन्त प्रत्येनी उपेक्षा, अनादर तथा अज्ञता ज छतां थतां होय छे. अने तेवा अज्ञ समाजनी स्वीकृतिनी ते विद्वानोने अपेक्षा के गरज पण होती नथी. बाकी, जे जे लोकोने डॉ. ढांकीना ज्ञाननो परिचय मळ्यो छे, तेमना ज्ञाननो उपयोग करवानो थयो छे, तेवा लोकोना चित्तमां तो ढांकीजीनी विलक्षण तज्ज्ञता माटे विस्मय अने अहोभाव हतो ज, छे ज. ____ढांकीसाहेबनो सम्पर्क केवी रीते अने क्यारे थयो ए तो याद नथी, पण त्रीस करतां वधु वर्षोथी सम्पर्क हतो तेम चोक्कस कही शकुं. मारुं ए सद्भाग्य हतुं के मारा गुरु महाराजनी आवा विद्वज्जनोनो समागम तथा सम्पर्क राखवानी मने हमेशां सम्मति मळती रही हती. प्रेरणा पण मळती, अने पोते पण ते विद्वानो साथे आत्मीयताथी परिचय राखता. बधा गुरुओ आवी परवानगी नथी आपता, अने तेथी आवं सद्भाग्य बधा मुनिओने मळतुं पण नथी होतुं. तेथी हुं, मने, भाग्यशाळी ज समजूं छु. ___ ढांकीसाहेब ए दिवसोमां बनारस रहेता. अनुकूलताए अमदावाद आवे. तेमने 'जैन साधु शास्त्राभ्यास अने संशोधनमां ऊंडो रस ले' ए माटे घणी होंश. अने खबर पडे के 'अमुक साधु आवो रस धरावे छे' तो कशा ज कारण वगर मळवा आवे. पूछपरछ करे अने आपणा काम के रस के अभ्यास विषे जाणे. पछी निरांते अनेक वातो करे. रमूज करतां जाय, वातवातमां इतिहास, ऐतिहासिक व्यक्तिओनो समयक्रम, पुरातत्त्व, आगमना पाठ, शब्दो - एम अगणित विषयो परत्वे आधार अने प्रमाण साथेनी जाणकारी आपतां जाय. याद तो न रहे, नोंधवानी अक्कल नहि, पण तेमने घेरा विस्मय साथे सांभळतो रहुँ, ने तेमना प्रत्येना आदरनो पिण्ड बंधातो जाय. प्रेरणा आपे. मार्गदर्शन आपे. क्षति सुधारे. ए आवे त्यारे मारे ओच्छव रचाय ! ने तेओ पण गुजरातमां - अमदावादमां आवे एटले अचूक मळे. कहो के परस्पर एक जातनी ममता बंधाई गई !
__ पोते शुष्क, नीरस के जड विद्वान नहोता. प्रसन्न अने जीवन्त माणस ! वातो गमे तेटली गम्भीर होय पण शैली हळवी, घणीवार रमूजसभर, एटले वात