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अनुसन्धान-७१
महत्त्वनो गणाय. अवां अनेक महत्त्वनां शोधपत्रो द्वारा एमणे देवालय-स्थापत्यना क्षेत्रे यशस्वी संशोधक तरीके कामगीरी बजावी. वळी आ माटेनी परिभाषा निश्चित करवानुं महत्त्व- काम पण एमणे कर्यु. तेओ संस्कृत, प्राकृत, पालि, मागधी, अपभ्रंश वगेरे भाषाओ वांची-लखी शकता अने ते साथे हिन्दी, मराठी अने फ्रेन्च भाषाने पण विशेष रूपे जाणता हता.
प्राचीन-मध्यकालीन स्थापत्य, पुरातत्त्व, शिल्प, शास्त्रीय संगीत, निर्ग्रन्थ साहित्य अने इतिहास जेवा विषयोनी साथोसाथ लोककला, रत्नशास्त्र अने बागकाममां पण ऊंडो रस धरावता हता. मात्र मन्दिरोनी मुलाकात लईने पाछा आवी जवाने बदले अनी झीणामां झीणी बाबतनो अत्यन्त चीवटपूर्वक अभ्यास करता. स्थापत्य, शिल्प अने स्थापत्यनां विविध घटको अंगे एमणे स्वतन्त्र पुस्तको लख्यां. बसोथी वधारे संशोधनलेखो अमनी पासेथी मळ्यां. ज्योर्ज मिशेले अमने 'भारतीय देवालयना विश्वकर्मा' अने गेरी तार्ताव्स्कीओ 'भारतीय देवालयना स्थापत्यना पिता' कह्या हता, तो प्रसिद्ध पुरातत्त्वशास्त्री मुनीश जोषीओ कह्यु, 'छेल्ली चार सदीमां आ क्षेत्रमा आटला मोटा विद्वान थया नथी.' भारतीय मन्दिरस्थापत्यना संशोधनमा चिरंजीव प्रदान करनार मधुसूदन ढांकीनुं व्यक्तित्व अन्यने प्रेम-वर्षाथी भींजवी दे तेवू मृदु, विनोदी अने निखालस हतुं.
ओमनी सर्जनात्मकतानो स्पर्श अमना साहित्यमां पण थाय छे अने अमनी वार्ताओमां तेओ स्थळ, पात्र, परिवेश बधुं हूबहू रची शके छे अने अने अनुरूप भाषा, बोली अने शैली निपजावी शके छे. 'शनिमेखला'नां ललित लखाणोमां अने 'ताम्रशासन'नी वार्ताओमां अमनुं गद्य अनी रचना-सभानताने कारणे ध्यानाकर्षक लागे छे.
संगीतमां जन्मजात रस धरावता मधुसूदन ढांकी एक समये कुन्दनलाल सायगल, पंकज मलिक, हेमन्तकुमार, जगमोहन वगेरेनां दर्दभर्यां गीतो गाता हता. दक्षिण भारतनी विख्यात गायिका सुब्बालक्ष्मीना कण्ठे गवायेलां मीरानां भजन सांभळतां थयुं के कर्णाटक शैली शिखाय, तो ज भजनना श्रवणमां विशिष्ट भावप्रक्रिया अने उत्कटता पमाय. आने माटे कटरामन पासे एमणे दोढ वर्ष प्रारम्भिक तालीम लीधी हती.