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अनुसन्धान-७१
आम प्रस्तुत अपूर्ण काव्य अने प्रभा.चरित्रना आधारे केटलीक विशेष विगतो जुदी पाडी छे । आ सिवायनी ए महापुरुषना जीवननी अनेक छूटक विगतो विमलप्रबन्ध-पर्यकथासंग्रह-मुद्रितकुमुदचन्द्रनाटक-उपदेशसप्ततिका-प्रबन्धचिन्तामणी वगेरे ग्रन्थोमां जोवा मळे छ । विशेष जिज्ञासुओए ते-ते ग्रंथो जोवा जोईए । __ प्रस्तुत काव्यना त्रीजा प्रस्तावमां आवतुं वीरभद्रनुं कथानक त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितना छट्ठा पर्वना बीजा सर्गमां वर्णित ए ज कथानक साथे घणी शाब्दिक समानता धरावे छे. तेथी तेना आधारे अत्रे घणुं सम्मार्जन करवामां आव्युं छे । ___कर्ता :- प्रस्तुत काव्य अपूर्ण होई तेना कर्ता, रचनासमय, गुरुपरम्परा विशे वधु विगतो प्राप्त नथी । परन्तु आ काव्यना दरेक प्रस्तावना अन्ते आवतुं 'पूर्णभद्र' पद - कर्ता तरीके 'पूर्णभद्र' नामना के उपनामना कोइ कविने कर्ता तरीके मानवा प्रेरे छे । दरेक प्रस्तावनी लेखनप्रशस्तिमां पण 'पूर्णभद्राङ्के' पद आवे छे. जे पण ए ज निर्देश करतुं जणाय छे । आ. वज्रसेनना परिवारमा पूर्णभद्र नामे कोई साधु-कवि होय अने तेमणे आ काव्य रच्यु होय तेवू अनुमान, आ उपरथी करी शकीए ।
आभार :- प्रस्तुत कृति सम्पादनार्थे आपवा बदल बीकानेर-श्री अगरचंदजी नाहटा पुस्तकालयना व्यवस्थापक श्रीसूरजमलजी तेमज ऋषभभाईनो खूब-खूब आभार । _ विशेष - पू. विद्वद्वर्यश्री जिनविजयजीनी तैयार करेल 'श्रीवादिदेवसूरिचरित्र' नी प्रेसमेटर एल. डी. इन्स्टीट्युट ओफ इन्डोलोजी-अमदावादमां होवानुं जाणवा मळ्युं छे । पण जोवा मळी न होवाथी विशेष कशुं लखी शकायुं नथी ।
___Clo. निकेश संघवी 'संयम', कायस्थ महोल्लो, गोपीपुरा, सूरत-१
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॥ वादीन्द्रश्रीदेवसूरिचरित्रम् ॥ अहँ नमः ॥ नमः श्रीदेवसूरिगुरवे ॥
प्रथमः प्रस्तावः कल्याणमन्दिरमपास्तसमस्तदोषं, विश्वाचितं सजलमेघगभीरघोषम् । सज्ज्ञानदर्शनविशुद्धगुणैरमेयं, नाभेयदेवमहमिद्धमहं महेयम् ॥१॥