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________________ ओक्टोबर २०१६ ढांकी साहेबनी में झीलेली छबी २४९ - डो. निरंजन राज्यगुरु मारा अभ्यासकाळ दरमियान हुं श्रीमधुसूदन ढांकीसाहेबना नाम अने कामथी परिचित थतो रह्यो हतो. परन्तु सर्वप्रथम अन्तरंग मुलाकात तो छेक ई.स. २००१ ना ओक्टोबर मासनी १२,१३,१४ तारीखो दरमियान सुरत खाते आचार्य श्री विजयशीलचन्द्रसूरिजी महाराजसाहेब आयोजित 'आनन्दघनजीपरिसंवाद' निमित्ते थई. ए पछी ९ ओक्टोबर २०१०ना रोज जैनसङ्घ - अमदावाद द्वारा गुजरातना जैनेतर साहित्यना त्रण अभ्यासी विद्वानो श्री कनुभाई जानी, श्री लाभशंकर पुरोहित अने डो. हसु याज्ञिकने अमदावादमां हठीसिंहनी वाडी खाते योजायेल श्रीहेमचन्द्राचार्य - चन्द्रक-प्रदान समारंभमां अतिथिविशेष तरीके श्री ढांकीसाहेब 'श्री हेमचन्द्राचार्यजी तथा सिद्धराज जयसिंहना इतिहास अंगे प्राप्त थता प्रमाणभूत सन्दर्भे' विशे हिन्दी भाषामां विद्वत्तापूर्ण व्याख्यान आपेलुं तेना श्रवणनो लाभ मळेलो अने वधु निकट अवायेलुं. ए सिवाय ज्यारे ज्यारे पू. विजयसूर्योदयसूरीश्वरजी महाराज साहेब अने पू. विजयशीलचन्द्रसूरिजी म.सा. अमदावादमां स्थिरवासमां होय अने मु. लाभशंकर पुरोहित, डॉ. मनोज रावल, डो. शिरीष पंचाल, डो. नाथालाल गोहिल, डॉ. राजेश पंड्या, कवि जयदेव शुक्ल वगेरे आत्मीय जनो साथे गोठडीनुं आयोजन थाय त्यारे त्यारे पण श्री ढांकीसाहेबनी विद्वत्तापूर्ण चर्चाओ सांभळवानुं सद्भाग्य मने मळतुं रहेलुं. संशोधन के अभ्यासलेखोमां तेओ प्राचीन भारतीय जैन- जैनेतर साहित्यना अभ्यासी तरीके संस्कृत, प्राकृत - अपभ्रंश के जूनी गुजराती भाषाओनी हस्तप्रतो, मन्दिरोना शिलालेखो, ताम्रपत्रो, दानशासनो, पुरातात्विक पुरावाओ, शिल्पमूर्तिविधानकला अने स्थापत्यविद्या वगेरे समाग्रीनो यथोचित उपयोग करीने पोतानां तारणो रजू करता. वळी संशोधन द्वारा सांपडेलां आ तारणो जो परंपरित रूढिवादी कट्टरता धरावती कोई व्यक्ति के संस्थाने मान्य न होय तो खुल्ला दिले पोतानी संशोधक तरीकेनी भूमिका पण स्पष्ट करता. केटलीकवार तो एमना द्वारा
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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