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अनुसन्धान-७१
बीजो टोन सेमि थाय ने ओ रीते भैरवी थाट ज बेझिक स्केल गणाय. आ सङ्ग्रहमां ज तमे आ शोधपत्र मूक्यो छे.'
_ 'तो शुं ?' ढांकीसाहेब बोल्या; 'तमे लिखितरूपमां ज तमारा मतनी चर्चा करजो. तमारा मते मारी स्थापना अस्वीकार्य छे तेनी तमे विगते चर्चा करजो. आथी ज अन्ते तात्त्विक ऊहापोह थाय, मत-मतान्तरनी चकासणी थाय !' . ___ आवी उदारता, पूरी पाकी समज केटली दुर्लभ !
- अन्ते में आ मुद्दानी चर्चा करी. एमणे ते पूरेपूरी छापी, प्रकाशित करी. मारो सामान्य अनुभव ओवो छे के हळवी वात-चीत-चर्चामां पण अन्य अभिप्रायने, मतने पसन्द करतो नथी. साचा संशोधन- लक्ष्य केयूँ होय, समज केवी होय ते अहीं जोई शकाशे. अल.डी.मां विविध विषयो परनी व्याख्यानश्रेणीनुं आयोजन थयु. मारे भागे साहजिक रीते ज प्राचीन-मध्यकालीन सन्दर्भ बोलवान होय. परन्तु ढांकीसाहेबे फरमाव्यु : 'तमे स्वरना माध्यमे रागना कंडारेला निश्चित स्वरूपने जाळवीने पण भारतीय संगीतना खयालमां रसमहालय कलाकार केवी रीते रचे छे अने भावक अनी अनुभूति करे छे, तेनी चर्चा करो. पश्चिमनी भावानुसारी ४ स्वररागनी गंथणी वेस्टर्न सिम्फनीमां थाय छे तेना मुकाबले रागना स्वरूपने, अना बन्धनने पूर्ण रूपे स्वीकारीने पण विविध भावो रजू करवानुं केटलुं मुश्केल छे अने भारतमां रागदारी संगीतमा ओ केवी रीते, कई टेक्निकथी सिद्ध करे छे तेनी उदाहरण साथे चर्चा करो !'. ___ हुं मुंझायो ने बोल्यो; 'कोण सांभळशे ने केटलुं अवगत थशे ?' एमणे सहास्य कह्यु; 'हुँ तो सांभळीश अने समजीश ने ! पछी शुं ?'
- अन्ते हिम्मत करी. परिणाम सारुं आव्यु. क्षेमुभाई दीवेटिया जेवा अधिकारी पण उपस्थित. बधांने, बीजांने पण रस पड्यो ने अन्ते ढांकीसाहेबे आ मुद्दानी विशद चर्चा पण करी. में 'कुमार'नी मारी लेखमाळामां इस्टर्न अने वेस्टर्न म्युझिकना पायाना साम्यनी विगते चर्चा करेली. सिम्फनी अने खयाल एक ज छे, मात्र बन्नेनी भावाभिव्यक्तिनी टेक्निक ज जुदी पडे छे. संगीत ज नहीं, साहित्य - अन्य कलाओ जेनां मूळमां प्राचीन ओवी आर्यपरम्परा छे, ते एक ज छे. आथी ज आर्यमूळनी बधी ज कलाओनुं मूळ गोत्र एक ज छे, उद्भव स्रोत समान छे तेथी भाषानी जेम कलामां तथा केटलेक अंशे धर्म अने