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ओक्टोबर-२०१६
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जन्मसमय :- उ. धर्मसागरजीकृत पट्टावलीमां वादी देवसरिनो जन्म '११३४'मां थयानो निर्देश छे. तेने बाद करतां तमाम स्थानोमां ११४३नुं वर्ष ज नोंधायेलुं जोवा मळे छे..
द्वितीय प्रस्तावमां दुष्कालनुं वर्णन घणुं वास्तवदर्शी थयुं छे - दुष्काल केवो कारमो हशे के धनिकोए पोतानी दानशालाओ (सदाव्रतो) बंध करी दीधी. पृथ्वी (लोकोनी) 'रलरोल-रडारोळ' थी दयामणी बनी. बजारोमां वेचातां दहीं जेवा पदार्थोनां भाण्ड-वासणने रांकलाओ तोडीफोडी नाखीने ढोळायेला ते पदार्थोने चोक-चोरा पर चाटता हता. (८)
अन्ननी कारमी अछत सर्जावाने कारणे, प्रायः सौ लोको स्वभावत: दयाळु होवा छता मांस-भक्षण करी निर्वाह करवा लागेला. श्रावकोने त्यां साधुओ आहारार्थे जाय तो तेओ 'आहार दोषित छे - तमने नहि खपे' एम झूठे बोलीने तेमने टाळता हता. (९)
गामडां उज्जड बन्यां. क्यांय रसोईनो अग्नि न रह्यो. बधे मृत जनोनां हाडकां ने मांस पथरायां. रस्ता निर्जन बन्या. अने नगरो गरीब ग्रामजनोथी उभराई गया. (१०)
आपणे जेने मरुधर-मारवाड कहीए, ते देशनी आवी दशा थतां श्रेष्ठी वीरनाग हिजरत करी लाटदेशे भरूचनगरे गया. (११-१२)
दुष्कालतुं ट्रंकु वर्णन पण केटलुं हृदयद्रावक कर्यु छे कविए !
पद्य ६७ मां थयेली वात जरा विलक्षण छे. पूर्णचन्द्र (काव्यनायक, वादिदेवसूरिनुं नाम) व्यापार करे छे, तेमां ते द्राक्ष खरीदीने तेना विनिमयमां चणा आपे छे. आमां द्राक्ष-चणाना विनिमयरूप व्यापार - ए बाबत जरा विलक्षण जणाय छे. आना अर्थघटन करवाना यत्न थया छे, परंतु ते अवास्तविक लागे छे. शब्दार्थ ज योग्य लागे छे (६७). अहीं प्रयुक्त 'धीवर' शब्द माछीमार अर्थमां नहि, पण बुद्धिमान एवा अर्थमां लेवानो छे. बीजी वात : तेओ व्यापारार्थे कोईना घरे गया, त्यां ते घरधणीने एक ठाममां कचरो भरी बहार नाखतो तेमणे जोयो. पूर्णचन्द्रे सहजभावे पूछ्यु के तमे आ धन (सोनुं) केम फेंकी रह्या छो ? पेलाने ख्याल आवी गयो, ने तेणे कर्वा के तुं आ फेंकायेलुं धन तारा हाथे लईने आ ठाममां भरी आप. तेम करतां ज ते कचरो मटीने धनरूपे फेरवाई गयं. श्रेष्ठीए एक मूठी सोनुं तेने भेट आप्युं, जे तेणे घेर जई पिताने सोंप्यु. (७०-७२)