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अनुसन्धान-७१
आचार्योनां नामो : मुनिचन्द्रसूरि (६), देवसूरि (७), हेमप्रभसूरि (८), जयशेखरसूरि (९), वज्रसेनसूरि (१०).
आमां हेमप्रभसूरि ए वादी देवसूरिनी शिष्य-परम्परानां आचार्य होवानी पूरी सम्भावना छे. जो के इतिहास-ग्रन्थोमां तेमनुं नाम नोंधायेखें जडतुं नथी, परन्तु एवां तो घणां नामो नथी. आ हेमप्रभसूरि पासे काव्यकारे अध्ययन कर्यु होय तेम श्लोक परथी समजाय छे.
__ जयशेखरसूरि सं. १३०१मां हता अने तेमणे तपा. जगच्चन्द्रसूरिनी निश्राए क्रियोद्धार करेलो, ते पछी तेमनी 'नागोरी तपागच्छ' शाखा प्रसिद्ध थई, इत्यादि विगतो 'जैन परम्परानो इतिहास' भाग २, पृ. ४१, पृ. ४६४ (नवी आवृत्ति) मां प्राप्त छे. त्यां आ काव्य विशे नोंध छे के "तेमणे वादीन्द्रदेवसूरिमहाकाव्य रच्यु (जैन सत्यप्रकाश, क्र. ५६)" ते हवे खोटी ठरे छे. केम के आ काव्यना कर्ता तो जयशेखरसूरिने गुरुस्थाने गणीने स्तुति करे छे. तेथी काव्यकर्ता अलग व्यक्ति ज छे ते स्पष्ट छे.
वज्रसेनसूरि. नागोरी वड तपागच्छ-पट्टावलीमां आ. जयशेखरसूरि पछी, ४६मा क्रमे तेओ आवे छे. आ काव्यमां कर्ताए तेमने छेल्ला याद कर्या छे, तेथी तेमना समयमां थयेला अथवा तेमना ज शिष्य होय तेवा कोई साधु-कविए आ काव्य रच्युं छे एम सिद्ध थाय छे. तेथी काव्यकर्तानो समय १४मा शतकनो पूर्वभाग होय ए वधु सम्भवित छे. १४मा पद्य प्रमाणे कर्ताए वज्रसेनसूरि आदि पासे वादी देवसूरिनी वातो सांभळी छे, अने तेना सहारे आ काव्य रच्युं छे.
__ जन्मस्थान :- पद्य ४६मां 'अष्टादशशत' नामना देशनो उल्लेख छे. ११८ गामोना समूहरूप ए प्रदेश, इतिहासज्ञोए नोंध्या मुजब, आबु पर्वतनी नजीकना, गुजरातना एक प्रान्तस्वरूप हतो. (गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति, पं. बेचरदास दोशी, पृ. २२१)
ते प्रदेशमा 'मधूहड' (५४) नामे नगर छे (त्यां आचार्यनो जन्म थयो छे). आ 'मधूहड' ने बीजे स्थाने 'माहड' एवा नामे वर्णवेल छे. 'माहड'नं 'मड्डाहत-मड्डाहर-मड्डार-मडार-मंडार' एम थयुं. तो केटलाकने मते 'मदुआ' गाम छे. 'मधूहड'थी 'मधूड-मधूअ-मदूअ-मदुआ' थई तो शके. वळी 'मदुआ' ने 'मडार' बन्ने स्थानो आजे पण विद्यमान छे. तो कयुं स्थान जन्मस्थान समजवू ? मोटा भागना संशोधको ‘मड्डाहड' तरीके 'मडार' (हाल- मंडार)ने ज स्वीकारे छे, 'मदुआ'ने नहि. आपणने पण ए ज वधु उचित तथ्य लागे छे.