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अनुसन्धान-७१
वादीन्द्र श्रीदेवसूरिचरितम्
- सं. गणि सुयशचन्द्रविजय __मुनि सुजसचन्द्रविजय
'पहिरत को मुनि वस्त्र तमु, जइ इह सुगुरु न होत' (बृहद् गुर्वावलीमुनि माल)
वादिदेवसूरिजी : जिनशासनना एक प्रभावक महापुरुष ।
एक समर्थ वादी-अनेक वादो जीतनारा, जेमना दिव्य अनुग्रहना प्रतापे ज आजे आपणे 'श्वेताम्बर' तरीके ओळखाइए छीए ।
एक प्रखर दार्शनिक - जेमणे 'प्रमाणनयतत्त्वालोक' ग्रन्थ तमज तेनी उपर ८४००० श्लोक प्रमाण 'स्याद्वादरत्नाकर' नामनी विद्वद्भोग्य टीका रची ।
ए महापुरुषना नाम अने कामथी विद्वद्जगतना प्राय: सौ कोड परिचित छ । प्रभावकचरित्र, प्रबन्धचिन्तामणी, पट्टावलीओ वगेरे ग्रन्थोना माध्यमे एमनुं जीवनचरित्र पण प्रसिद्ध छे । बन्धुत्रिपुटीमांना मुनि न्यायविजयजी म. ए तो पोतानी रसाल शैलीमां ए पुण्यपुरुषनुं चरित्र आलेखेल छे ।।
अहीं पण ए महापुरुषना स्वतन्त्र संस्कृत जीवनचरित्र महाकाव्यने प्रकाशित करवामां आव्युं छे । प्रायः १३ मी सदीना पूर्वार्धमां रचायेल आ कृति अपूर्ण रूपमां विद्वद्वर्य श्रीअगरचंदजी नाहटाने प्राप्त थई हती । तेमणे प्रायः 'जैन सत्य प्रकाश' मां प्रस्तुत कृतिनो संक्षिप्त परिचय आपी सम्पूर्ण कृति प्राप्त करवानो प्रयत्न को हतो । ते प्राप्त न थतां मूल अपूर्ण कृति पण प्रकाशित थई न हती । आ वखते संयोगवश अमे बीकानेर बाजु विहार कर्यो अने प्रस्तुत कृति श्रीसंघ समक्ष मूकवानो अमने लाभ मळ्यो । __अहीं अमे पूर्व प्रसिद्ध ए महापुरुषना सम्पूर्ण जीवनचरित्रनुं पुनरावर्तन न करी, तेमना जीवननी विशेष नोंधो (तवारीखो) जुदी तारवी, प्रस्तुत काव्यनी मात्र ध्यानार्ह बाबतो नोंधी छे - १. जन्म (मड्डाहत/मधूहड)
वि.सं. ११४३ २. दीक्षा (भरुच)
वि.सं. ११५२