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अनुसन्धान-७१
अहीं आ खास सन्दर्भमां एक अन्य हैतवनी स्पष्टता करवानी जरूर छे. जैनोमां घणा काळथी 'अक्षय स्वस्तिक' ने 'नन्द्यावर्त' मानी लेवामां आव्यो छे, जे मोटो भ्रम छे. बीजी वात ए छ के सदीओथी 'नन्द्यावर्त'ना उच्चार अने जोडणी (मुनिओ पण मध्ययुगथी लई आज दिवस सुधी) 'नन्दावर्त' सरखो करे छे जे भूलभरेलुं छे.
'नन्द्यावर्त' ए ‘अक्षय स्वस्तिक'थी जुदी ज आकृति छे, आजे लगभग १५०० वर्षथी तेनी असली आकृति भुलाई गई छे. कोशकारो तेने जलचर 'महामत्स्य' के 'अष्टापद' (giant squid, octopus) वा 'करोळिया' के पछी 'तगर'ना कुलनी आकृति समान गणे छे. आ सौमां पाद (के पांखडीओ) वळेली होई, ते उपमानना आधारे असली नन्द्यावर्तनी पीछान थई शके छे. तेनी आकृति मौर्यकालीन चलणी मुद्राओ (कार्षापण) पर अने मथुराना शककालीन जैन आयागपट्टो पर - अने आम ईस्वीसन् पूर्वे त्रीजी सदीथी लई ईस्वीसननी पहेली सदी सुधी अङ्कित थयेली जोवा मळे छे. स्वस्तिक, अक्षय-स्वस्तिक अने नन्द्यावर्तनी आकृतिओ आ साथे रजू करुं छु. (नोंधना अन्ते), ते उपरथी त्रणेना देखावमां रहेलुं अन्तर स्पष्ट थशे. 'स्वस्तिक' अने 'नन्द्यावर्त'नो समावेश अष्टमङ्गलोमां थाय छे. 'नन्द्यावर्त'ने स्थाने शिल्पचित्रादि अङ्कनोमां जैनोमां 'अक्षय स्वस्तिक'नी चित्रणा ठेठ ११मी सदीथी तो थती आवी छे. जेमके कुंभारियाना शान्तिनाथ जिनालय (प्रायः ईस्वी १०८२)ना गूढमण्डपना द्वार उपरना अष्टमङ्गलपट्टमां असली नन्द्यावर्तने बदले अक्षय-स्वस्तिक कोरेलो छे, जे भूल शोचनीय छे. वर्तमानमां पण जैनोमां अक्षय-स्वस्तिकने ज नन्द्यावर्त तरीके कूटी मारवानी प्रवृत्ति रही छे. 'नन्द्यावर्त'मां नन्दीना आवर्तननो, धुरीने आधारे गोळ गोळ फरवानो भाव रहेलो छे, जेम अरहट (रेंट) अथवा घाणीनो बळद चक्कर चक्कर फरे तेम. में जे चित्र आप्युं छे ते मथुराना ईस्वीसन्नी प्रथम सदीमां अंकायेल आयागपट्टमां वच्चे मोटां माङ्गलिक चिह्नरूपे कोरेलुं छे. तेनी चतुर्भुजाओ माछलीना उत्तराङ्ग जेवी बतावी होई कोशकारोए कहेल 'महामत्स्य'र्नु प्रतिमान पण त्यां सार्थक बनतुं जोई शकाय छे.