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________________ १७६ अनुसन्धान-७१ करते है । श्रीकृष्ण अपने लघुभ्राता के दर्शन के लिए अरिष्टनेमि के पास जाते है और उनसे सारे घटनाचक्र को जानने की अपेक्षा करते है । अरिष्टनेमि उन्हें केवल इतना ही बताते है कि जिस प्रकार तुमने एक वृद्ध को सहयोग देकर दुःख मुक्त किया था उसी प्रकार तुम्हारे भाई को भी एक व्यक्ति ने सहयोग देकर संसारचक्र से मुक्त कर दिया है। इसी कथाप्रसंग में अवान्तर रूप से श्रीकृष्ण की सहयोग भावना का निम्न प्रसंग हमें मिलता है - श्रीकृष्ण अपने लघु भ्राता गजसुकुमाल के साथ जब अरिष्टनेमि के वन्दन को जाते हैं, तो उन्हें मार्ग में ईंटों का एक बहुत बडा ढेर दिखाई पडता है । वे देखते है कि एक वृद्ध जो अत्यन्त जर्जर और क्षीणकाय है उस विशालकाय ढेर में से एक-एक ईंट उठाकर घर के अन्दर रख रहा है। श्रीकृष्ण उसकी उस पीडा को देखकर हाथी पर बैठे हुए ही एक ईंट उठाते है और उसके घर में डाल देते है । श्रीकृष्ण के साथ आनेवाला समुदाय और सैन्यबल भी उसका अनुसरण करता है और इस प्रकार अल्प समय में ही वह विशालकाय ईंटों की राशि वृद्ध के घर पहुंच जाती है । यह हम देखते है कि अन्तकृत्दशा में वर्णित कथाप्रसंग में अनियसेन आदि देवकी के छह पुत्रों की सुलसा के मृत पुत्रों के साथ परिवर्तन की घटना गजसुकुमाल के जन्म और दीक्षा की कथा तथा श्रीकृष्ण के द्वारा उस वृद्ध को सहयोग देने की अवान्तर कथा ये सभी उल्लेख जैन परम्परा के अतिरिक्त अन्यत्र नहीं पाये जाते है । हिन्दु परम्परा में देवकी को श्रीकृष्ण से पूर्व होनेवाले पुत्र-पुत्रियों के जो उल्लेख है वे इस कथा से एकदम भिन्न है । फिर भी दोनो में इतना साम्य अवश्य है कि दोनो परम्पराओं में कंस के कोप से बचने के लिए देवकीपुत्रों का स्थानान्तरण हुआ है । श्रीकृष्ण के पूर्वज :____ वसुदेवहिण्डी में श्रीकृष्ण के पूर्वजों की चर्चा करते हुए यह बताया गया है कि हरिवंश में सोरि और वीर नामक दो भाई उत्पन्न हुए । सोरि ने अपनी राजधानी सोरिकुल में स्थापित की और वीर ने
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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