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अनुसन्धान-७१
जिन समभंग में सीधे खडे होते हैं, उनकी दोनों भुजाएँ लम्बगत घुटनों तक प्रसारित होती हैं और आँखें नासाग्र को देखती हैं । इस प्रकार की प्रतिमा कायोत्सर्ग के नाम से या प्रतिमा के नाम से प्रसिद्ध है । यह मुद्रा केवल जिनों के मूर्त अङ्कन में ही प्रयुक्त है । वस्तुत: कायोत्सर्ग का अर्थ है कि जिनशरीर से पृथक् तथा सब बाह्य सम्पर्क से भिन्न है जो मानसिक स्थिति को व्याकुल कर सकते हैं । आसीन अथवा खडी प्रतिमा में जिन नग्न हैं । दिगम्बरों में बिना अलङ्कार है (नीचे भी दे०) । श्वेताम्बरों में वे वस्त्र पहने हैं और गर्दन की चारों ओर माला पडी है । पर माला अथवा अलङ्कार विरक्ति के भाव को हटाते नहीं, बहुत लोग ऐसे मानते हैं। कभी सिर के पीछे भामण्डल दिखाई देता है । वक्षस्थल पर कभी-कभी श्रीवत्स का अङ्कन होता है । कुछ अपवाद हैं जैसे पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनाथ के नागफण, नहीं तो, लाञ्छन यदि न हों, तो जिनप्रतिमाओं के बीच में मूलभेद नहीं है । एक तीसरे प्रकार की प्रतिमा उपलब्ध है जिन में शरीर कि कुछ पंक्तियों की छाया में एक कांसे के पटल में खींची है । जिसको सिद्धप्रतिमा कहा जाता है। __जैन लोगों के लिये जिन की पूजा जैन धार्मिक प्रथा है । यदि हम अपवादों को दूर कर रहे हैं जो मूर्तिपूजा और मन्दिरों में पूजा करने को विरोधी हैं जैसे स्थानकवासी । मन्दिरों में लोग जिनदर्शन आदरपूर्वक तथा भक्तिपूर्वक करते हैं, चाहे द्रव्यपूजा द्वारा या भावपूजा द्वारा । २०वीं शती के ज्ञानसुन्दर मुनि ने बताया है -
'प्रतिमा के द्वारा मैं परमोत्तम देवता पवित्र, नित्य, केवलज्ञानी जिन की पूजा करता हूँ। प्रतिमा केवल कारणरूपी है । जिस तरह से ग्रन्थों में सारे शब्दों द्वारा जिन को आदर करते हैं उसी प्रकार प्रतिमा द्वारा सर्वज्ञ जिनों के शरीर का आदर करता हूँ।' (Jnanasundara १९३६, दे० Cort २०१० पृ० २५५)
जिनप्रतिमा की सुन्दरता की विशिष्टता को जानने के लिये हम प्रतिमाओं को देख सकते हैं, या प्रशंसा की स्तुतियां को पढ सकते हैं । सबसे पुरानी