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________________ ओक्टोबर-२०१६ १२३ (४) श्रीनेमिजिन स्तवन सरसति सामिनि मात, मुझ दीजइ दया धरी रे । विविध वचन विख्यात, गाउं नेम सेवा करी रे ॥१॥ मात शिवादे नंद, सोहे पन्यम चंदलो रे । संयम लेवा जिनंद, करें नवनवो फंदलो रे ॥२॥ भाई कहे गोपाल, परणो ओक ज गोरडी रे । नहीं तो अबलाबाल, मनावइ माननी मोरडी रे ॥३॥ सहस बत्रीसें नारी, मिली कामिनी कान्हनी रे । तेड्यो नेमकुमार, चाली वनखं[ड] भामिनी रे ॥४॥ गाइं सरले सादि, वाहे वाद्य सोहामणा रे । खेलती वादोवाद, लीइं नेमना भामणा रे ॥५॥ देउर नेमकुमार, लाहो यौवन लीजिइ रे । परणो ओक ज वार, नाहनी राजुल दीजिइ रे ॥६॥ साहिब सामलियो नेम, करे परणवा आखडी रे । भोजाइ बोले अम, तुझ धीठी छइ छातडी रे ॥७॥ रामा मिली बे-च्यार, कीधो नेमने आकलो रे । अम्हो कहुं धुं वारोवार, हवे मान वीवाहलो रे ॥८॥ मौन करी महाराज, रह्यो राजुलनाहलो रे । मांनी महिला आज, तोरण आव्यो सामलो रे ॥९॥ पशु सुणि पोकार, रथ फेरी पाछा वल्या रे । दीक्षा ग्रही गिरनारि, राजुल नेम बेहुं मिल्या रे ॥१०॥ जय जय श्रीजिनराय, सेवी शिवसुख लीजिइ रे । लखिमीविजय उवज्झाय, शीस तिलकनें दीजिइ रे ॥११॥ ॥ इति श्री नेमिजिनस्तवनं संपूर्णं ॥
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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