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________________ १२० अनुसन्धान-७१ बहुभावभगतिं भली युगति श्रीजिनपासचिंतामणी, उवज्झाय लक्ष्मीविजयसेवक तिलक कहें द्यो शिवरुद्धि घणी ॥१५॥ ॥ इति श्रीचिंतामणीपार्श्वनाथस्तोत्र संपूर्णं ।। श्रीसुविधिनाथ-स्तवन सुविधि सुविधि जिणेसर सेवो, अलवेसर अवतार रे । सिंहासन बइठां बहुजन मन, मोहें जिन दीदार रे ॥१॥ आगलि ऊभा ओलग कीजइ, तो साहिब मन रीझइ रे । साची सेवा जो प्रभु जाणइ, तो सेवा फल सीझइ रे ॥२॥ आप वडाइ तेह ज साची, जे चित राची आपइ रे । प्रारथना कीधी नवि पहिडइ, निज थानके लेइ थापइ रे ॥३।। मोटि मता देखी न पतीजइ, जे सेव्यो नवि भीजइ रे । गीरुओ ठाकुर तेह कहीजइ, जेहथी सुख लहीजइ रे ||४|| ग्यानंदृष्टि निरखंता निरख्यो, नाथ सुविधिजिन परख्यो रे । त्रिभुवननायक अह ज साचो, हुं देखी हियडई हरख्यो रे ॥५॥ तुह्म सुरति अह्म हृदय धरीनइ, भीत(भीम)-भवोदधि तरीइ रे । जिम नर नव नावाइ करीनइ, दुस्तर जलधि उतरीइ रे ॥६॥ दीवनयरनो संघ सोभागी, वडभागी नित जेह रे । सुविधिजिणेसर सेवाजलस्युं, पवित्र करई निज देह रे ||७|| सकल सुराधिप मधुप निरंतर, अणहुंतइ अक कोडि रे । जिनवर विकसित पदपंकजनी, सेव करइ कर जोडी रे ॥८॥ ओ जिन जेहनइ मनगृह रमस्यई, ते शिवरमणी वरस्यइ रे । लखिमीविजयउवज्झायपसाई, तिलकविजय जय धरस्यइ रे ॥९॥ . ॥ इति श्री सुविधिजिनस्तवन संपूर्णं ॥
SR No.520572
Book TitleAnusandhan 2016 12 SrNo 71
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages316
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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