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जुलाई - २०१६
लख्यण साहित छंद तर्क विचारा, भरह पीगल ज्योतिक अलंकारा । नीत गणित अभिधान ते माला । भणई० ॥ १०९ ॥
ए कुमर ठाकरशी कहूं कुण जोडई, विद्या चउद भणी दिन थोडइ । वदनि झरइ मुगता - फल - माला | भणइं० ॥ ११०॥
कला बहुतरि कीया रे अभ्यासा, मात-पिता मनि पोहोती आसा । एणि परि वरजती सुखभरि काला । भणइं० ॥ १११ ॥
रमइ रामति कुंअर नान्हडीउ, लोक-प्रसिद्ध रंगई रस चडीउ । जय जंपइ प्रणमु त्रण काला । भणई० ॥ ११२॥
इति खसाला (नेसाला) नी ढाल ॥५॥
दूहा ॥ राग सारंग मलार ॥
भरत-खेत्रि भविअण सुणो, तीरथ दोहू महतीर । जय जंपइ एक सत्रुंजुं, बीजुं जगत्र-गुरु हीर ॥ ११३ ॥ हीरजि नांम जंपतडां, घरि हुइ धण-कण कोडि । जय कहि जंबूद्वीपमां, नही को हीर- संघोडि ॥११४॥
. जंबूद्वीप तां जोईओ, भरत - खेत्र - भूपीठ | जय जंपइ गुरु हीरजी, समवडि कोई न दीठ ॥ ११५ ॥
॥ ढाल ॥
वीरतणि पाटइं जयु, जाणि सुधरमास्वामि ललणां । हीरविजय सूरीसरु, जस महिमा अभिराम ललणां ॥ ११६ ॥
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हीरजी मोहन - वेलडी, जयसु मनमथ - रूप ललनां ।
जस कीरति जगमां घणी, सेव
करइ सवे भूप ललणां,
हीरजी मोहन - वेलडी ॥११७॥ आंचली ॥