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________________ ७८ लालंता पालंतडां, षट वछर हूआ जाम | मात-पीता मनिं चींतवइ, पुत्र भणावुं ताम ॥ ९७|| वरस सातमई पुत्रनई, सुंदर-मति सुकुमाल । मात-पिता स - महोछवई, भणवा ठवइ नेसालि ॥९८॥ अनुसन्धान-७० ॥ ढाल ॥ पाटी खडीओ हाथि विसाला, पुत्र भणेवा जाइ रे निसाला । भूषण - भूषित तुनुं सुकुमाला, भणिदं सास्त्र मतिमान रसाला ॥९९॥ कर जोडी गुरु-सेवा कीजइ, विनय करी विद्या सवि लीजइ । विण विद्या न सोहे रूपाला, भणइं सास्त्र मतिमान [र]साला ॥ १०० ॥ आंकणी ॥ आउलि-फूल जिसा रे सुरंगा, विद्या-गंध-रहित जस अंगा । न लहि मान - महुत नर ठाला । भणई० ॥१०१॥ आलसवंत विद्या नवि पावइ, विण विवसा घरि संपति नावइ । न्यान संपति सवे लहि ऊजमाला । भणइं० ॥ १०२ ॥ सीउं कीजइ नर सुकुमलि (सुकुलिं) प्रसूता, विद्या - हीन नर जमि (गि) विगूता । विण विद्या नर कहीइ छाला । भणइं० || १०३ || नरपति पूजा लहइ निजदेसई, पंडित लहइ निजदेस - विदेसई । विद्यावंत नर नमई भूपाला | भणई० ॥ १०४ ॥ धन- हीना नर हीन न कहीइ, धन कहु कहिने निश्चल रहीइ । विद्या - हीन नर हीन सुगाला | भणई० || १०५।। विद्यावंत नर बहू गूण भरीआ, मूरखमाहि सवे अवगुण धरीआ । विद्यावंत नर होइ सुखाला । भणइं० ||१०६|| विद्यावंत नर अमृत-वाणी, मूरख वचन बोलिउं पापिणी । पंडित पामई बहू गुण - माला | भणई० ॥ १०७॥ विण विद्या वाणिज नवि बूजइ, विद्यावंत मति सघली सूझइ । विद्यावंत नवि हींडेइ पाला । भणई० || १०८।।
SR No.520571
Book TitleAnusandhan 2016 09 SrNo 70
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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