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________________ अनुसन्धान-७० श्रीलक्ष्मीकल्लोलगणिकृत सप्तवर्णाक्षर-वरेण्यावमशब्दयथितसूक्तसङ्ग्रहः (सावचूर्णि:). ___ - सं. विजयशीलचन्द्रसूरि भूमिका __संस्कृत साहित्य-सर्जनना क्षेत्रे मध्यकाळना जैन मुनिओए जे खेडाण कर्यु छे तेनुं वैविध्य तेमज वैपुल्य जोतां भारे अचंबो उपजे छे. साहित्यनी केवी केवी छटाओ आ मुनिओए विकसावी छे ! जैन संस्कृत साहित्यना इतिहासना सन्दर्भो जोईए त्यारे, के पछी ज्ञानभण्डारोमां सचवायेली असंख्य नानी-मोटी रचनाओनी हाथपोथीओ पर ध्यान आपीए त्यारे, एमनी आ निर्व्याज साहित्य-उपासनानो आछेरो अंदाज आवी शके. आ स्थळे एक विरल अने विलक्षण कही शकाय तेवी कृति प्रगट थई रही छे : 'सूक्तसङ्ग्रह' नामे. सूक्त एटले सुभाषित. तेनो आ सङ्ग्रह छे. आनी विलक्षणता ए छे के ६९ अनुष्टुप् श्लोकोमां, क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, प वर्ग, य वर्ग, श वर्ग - ए सात वर्गोमां आवता, ङ सिवायना, तमाम व्यञ्जनाक्षरथी शरु थता ६-६ शब्दो कविए पसंद कर्या छे. तेमां प्रथम ६ शब्द 'सज्जन' परक अने बीजा ६ शब्द 'दुर्जन' परक योज्या छे. बे पद्योमा १२ शब्दो. अलबत्त, बधा शब्दो असल एटले के सीधा शब्दकोशमांथी ज उपाडेला होय एवं नथी. घणा शब्दो शुद्ध शब्दो छे, घणा कृत्रिम-नीपजावेला-संयोजित शब्दो छे, केटलाक देशी शब्दो पण छे, तो थोडाक ते समयमां बोलाती बोलीना तळपदा शब्दो पण छे. शब्दो साथे काम पाडनाराओ माटे आ एक मजानी-रसप्रद रचना गणाय. आ बधा शब्दोना अर्थ पकडाय-समजाय तेम नथी. तो कर्ताए पोते ज (प्रायः) ते पद्यो पर अवचूर्णि पण लखी दीधी छे, जेमां ते ते शब्दोना अर्थवाचक पर्यायो आप्या छे. कर्ता तरीके प्रान्ते कोईनुं नाम नथी, तेथी लागे छे के मूळ रचनाकारे ज आ पर्यायावचूणि रचेली हशे. वांचनारनी सुगमता खातर पद्यगत शब्दो पर तथा अवचूरिमां तेना अर्थपर्यायो पर अङ्को मूकी दीधा छे, जेथी कया शब्दनो कयो अर्थ कर्ताने अभिप्रेत
SR No.520571
Book TitleAnusandhan 2016 09 SrNo 70
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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