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जुलाई-२०१६
सं. १३२८मां विजयसिंहसूरिए आ प्रशस्ति बनावी.
उपरनी ४४-५९ पद्योवाळी प्रशस्ति साथे जोडायेल आ गद्य भाग होवानुं तथा आ लेख गिरनारना नेमि-चैत्यमां ज हतो तेम नक्की थाय छे..
पूर्वजोना स्तम्भनी वात आमां आवी, ते अंगे विचार करतां एम लागे छे के गिरनार पर्वतनां जैन मन्दिरोना प्राङ्गणमां, आपणे जेने पाळिया तरीके ओळखीए ते प्रकारना, चारेक फीट ऊंचाई धरावता केटलाक स्मृतिस्तम्भ, आमतेम रखडता पडेला, आ लखनारे थोडां वर्ष अगाऊ जोयेला. ते स्तम्भो पर गिरनार पर समाधिस्थ दिवंगत जैनाचार्यो के साधुओनी आकृति कोतरेली होय, नीचे संस्कृत लेखो होय. घणा स्तम्भ पर श्रावक-गृहस्थनी आकृति पण जोवा मळी.
आवा स्तम्भो विषे ज उपरनी प्रशस्तिमा उल्लेख होय एम लागे छे. ए स्मृतिस्तम्भोने एकत्र करीने योग्य जगाए योग्य रीते साचववानी भलामण, ते समयना वहीवटदारोने समजावट साथे करेली, परन्तु आवी दरकार कोण ले ?
डॉ. मधुसूदन ढांकीना गिरनार विषयक पुस्तकमां आवा स्तम्भना फोटोग्राफ जोया छे. तो सक्करबाग म्युजियमनी वखारोमां पण आमांना केटलाक स्तम्भ जोया छे. आजे ते होय के केम, ते सवाल छे.
प्रतमां आनी पछी एक प्रशस्ति-अंश छे ते तो 'वस्तुपाल-प्रशस्तिसंग्रह' मां मुद्रित छे.
ऐतिहासिक तथ्यो उजागर करती आवी सरस वस्तु शोधीने सम्पादित करीने आपवा बदल तेना सम्पादको सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी - ए बन्धु-मुनि-द्वयने आपणे घणां अभिनन्दन आपीए.