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________________ जुलाई-२०१६ १६१ पाया छ - सुधारो त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितमहाकाव्यम् - भाग ३, पर्व ५-६-७ (सं. - पं. श्रीरमणीकविजयजी गणि, विजयशीलचन्द्रसूरि, प्र. - क.स. श्रीहेमचन्द्राचार्य न.ज. श.स्मृ.सं. शिक्षणनिधि - अमदावाद, सं. २०५७)मां रहेली एक क्षति तरफ मुनिश्री श्रुततिलकविजयजीए ध्यान दोर्यु छे. पर्व-७, सर्ग-१०, श्लोक ५२ आम छे - "भ्रान्त्वा श्रीकान्तजीवोऽभून्मृणालकन्दपत्तने । राजसूनुर्वज्रकण्ठः, शम्भु-हेमवतीभवः ॥" . आमां त्रण पाठान्तर नोंधाया छे - “राज्ञः सूनु०, वज्रकन्दः, शम्भुर्तेम०" अत्रे रावण, लक्ष्मण, सीता व.ना पूर्वभवोना वर्णन- प्रकरण छे. तेमां श्रीकान्तनो जीव शम्भु नामनो राजपुत्र थईने भवान्तरमां रावणरूपे जन्म ले छे तेवो सन्दर्भ छे. परन्तु उपरना श्लोकथी तो श्रीकान्तनो जीव 'शम्भु' नहि, पण शम्भुनो पुत्र 'वज्रकण्ठ' थयो एवं फलित थाय छे. जे असङ्गत छे. मुनिश्री अत्रे अर्थसङ्गति माटे उत्तरार्ध आवो होई शके तेम सूचवे छे - "राज्ञः सूनुर्वज्रकम्बोः, शम्भुर्हेमवतीभवः ॥" आमां जे त्रण सुधारा सूचवाया छे, तेमांथी बे तो (राज्ञः सूनु० अने शम्भुर्तेम०) पाठान्तररूपे मळे ज छे. अने 'वज्रकम्बोः'नुं लेखनदोषथी 'वज्रकण्ठः' थयुं होय ते पण शक्य छे. तेमज आ पाठ मुजब श्रीकान्तनो जीव वज्रकम्बु राजा अने हेमवती राणीनो पुत्र 'शम्भु' थयो तेवू फलित थाय छे, ते पण बराबर छे. आ क्षतिनिर्देश करवा बदल मुनिश्रीना अमे आभारी छीए. आ उपरान्त अन्य एक क्षति पण हमणां अमारा ध्यानमां आवी छ : त्रिषष्टि० भाग-४, पृ. १८०, पर्व ९, सर्ग ३, श्लोक २६मां आवता 'राधा' शब्दनो अर्थ टिप्पणीमां 'अनुराधानक्षत्र' नोंधायो छे. तेने बदले 'विशाखानक्षत्र' थवो जोइए.
SR No.520571
Book TitleAnusandhan 2016 09 SrNo 70
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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