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________________ जुलाई-२०१६ आजीविकोनी कला विशे पण चर्चा करे छे । ए- ए छेल्लुं विधान तद्दन साचुं छे के : “जो गोशाल मंखलिपुत्र अने आजीविको न होत तो जैनविद्या अने एनुं भारतीय धार्मिक अने दार्शनिक क्षेत्रे प्रदान कंईक जुएं ज देखातुं होत." सम्पादकनी नोंध विश्वनां अनेक विद्याकेन्द्रोमां तेमज स्वतन्त्र रूपे, अनेक विद्वानो, भारत ना धर्म, तत्त्वज्ञान, दर्शन, इतिहास वगेरे विषे अध्ययन तथा संशोधन कर्या करे छे । तेओ इन्डोलोजी, बौद्धोलोजीनी जेम ज जैनोलोजी विषे पण कार्य करता होय छे । तेमनां अध्ययनो समीक्षात्मक, तुलनात्मक के आलोचनात्मक एम विविध प्रकारना होय । - ते लोको जैन नथी । जैन परिपाटी के परम्परागत मान्यताओथी वाकेफ नथी अथवा वाकेफ होय तो पण ते बधुं तेमने मान्य होवू जरूरी नथी । तेओ तद्दन तटस्थ अने त्राहित अभ्यासु जन होवाना, अने पोताना स्वतन्त्र दृष्टिकोणथी ज बधुं जोवा-तपासवाना । ए वात जाणीती . छे के भगवान महावीरना समयमां अन्य ६ महात्माओ पण तीर्थङ्कर तरीके प्रख्यात हता; तेमनो पण सिद्धान्त, प्रभाव तथा अनुयायीगण हतो । तेमांना एक ते मंखलिपुत्र गोशाल । आपणा परम्परागत ग्रन्थोमां ते भगवान महावीरना जीवनमा एक खलनायक अथवा विदूषकरूपे आलेखाय छे, वर्णवाय छे । पर्युषण दरम्यान थतुं तेनुं वर्णन उपहासात्मक होय छे, जे विचारशील के व्यापक अभ्यास करनारा माटे अरुचिकर होय छे । परन्तु ज्यारे संसारमां ने समाजमां तेने पण एक तीर्थङ्कर के धर्मप्रवर्तक तरीके ख्याति अने स्वीकृति मळी होय त्यारे, तेम ज तेना प्रतिपादित सिद्धान्तोनु पण भारतीय तत्त्वदर्शनना सन्दर्भमां मूल्य अंकातुं होय त्यारे, तटस्थ के जैन न होय तेवा विद्वानो तेना अने भगवान
SR No.520571
Book TitleAnusandhan 2016 09 SrNo 70
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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