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जुलाई-२०१६
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होवाना कारणे भूल रहेवा पामी छे । क. ४३ मां 'सापदेसु यई उसीसई' छे ते वाचनभूल छ । 'साप दे सुयई उसीसइ' एम वांचतां अर्थ बेसी जाय छ । उंदरथी गभराय छे पण जरूर पडतां सापने ओशीके मूकीने सूई जाय छे - एवी नारीस्वभावनी विलक्षणतानी अहीं वात छ ।
'गजसिंघरायचरित्र रास' नामे दीर्घ रासकृतिनो अर्धभाग आ अंकमां प्रगट थयो छे । वाचना महदंशे शुद्ध छे । महो.यशोविजयजी म.ना शिष्य तत्त्वविजयजीनी पांच रचनाओ आ अङ्कमां प्रसिद्ध थई छे, ते कविनी प्रारम्भिक रचनाओ हशे एम जणाय छे । 'बार व्रतनी टीप' मां १२ व्रतोनी सङ्क्षिप्त व्याख्या जोवा मळे छ । __आ. श्रीरामलालजीना लेखमां आगमोना पाठनिर्णय वखते ऊभा थता प्रश्नो अने ते अंगेनां मार्गदर्शक बिन्दुओनी सुन्दर चर्चा थई छ । सागरजी महाराजे आगम प्रकाशननुं कार्य कर्यु तेने ते समयनी दृष्टिए भगीरथ कार्य कही शकाय । अशुद्ध पाठो अने पाठान्तरोनी समस्या वृत्तिकारो/चूर्णिकारो सामे पण हती, तेथी तेमना करेला कार्य- अवमूल्यन न करी शकाय; एवं ज सागरजी महाराजना कार्य विशे समजवू योग्य छे । अनु० ना सम्पादकजीए पोतानी टिप्पणीमां कडं के "आगमोमां परिवर्तन श्रीघासीलालजी महाराजे कर्यां हतां ते विशे आ. श्रीरामलालजीए कोई जिकर को नथी" - ए वात गम्भीर छ । श्रीरामलालजीना ध्यानमां आ वात हशे ज । आनन्दनी वात ए छे के स्थानकवासी, तेरापंथी वगेरे परम्पराओना विद्वान मुनिवरो चूर्णि/वृत्ति व. ना महत्त्वनो स्वीकार करता थया छे अने संशोधनसमीक्षणनी पद्धति जे हवे विकसित थई छे तेनो उपयोग करता थया छ । ___मस्करिन् / मक्खलि विषयक चर्चामां मुनिश्री त्रैलोक्यमण्डनविजयजीए उपस्थित करेला मुद्दा पण ध्यानार्ह छे । 'मङ्खलि'मांथी 'मस्करिन्' थq शब्दविकासनी दृष्टिए सम्भवित नथी ए मुनिश्रीने स्वीकार्य लागे छे । मक्खलि । मङ्खलिनो पूर्वज़ कोई शब्द प्राचीन संस्कृतमां होवो जोईए एवं मुनिश्री, सूचन ध्यानार्ह छे । एनी शोध चालू राखवा जेवी छ ।