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जुलाई-२०१६
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लेखश्रेणी के इस चरण में, पं. श्रीदलसुखभाई मालवणियाजी के द्वारा सम्पादित 'न्यायावतारवातिकवृत्ति' (प्र. सरस्वती पुस्तक भण्डार-अहमदाबाद) गत उनके ही द्वारा लिखित ख्यातिवाद से सम्बन्धित टिप्पणियाँ और पं. श्रीनगीनभाई शाह द्वारा लिखित 'षड्दर्शन, भाग-२, न्याय-वैशेषिक दर्शन' पुस्तक (प्र. - युनिवर्सिटी ग्रन्थनिर्माण बोर्ड) गत 'भ्रान्तज्ञान' इस प्रकरण से काफी सहायता मिली है । यदि ये दो साधन नहीं मिलते तो लेख का यह स्वरूप शायद नहीं बन पाता ।
इससे अतिरिक्त न्यायकुमुदचन्द्र (-प्रभाचन्द्राचार्य), प्रमेयकमलमार्तण्ड (-प्रभाचन्द्राचार्य) व अष्टसहस्रीतात्पर्यविवरण (-उपाध्याय यशोविजयजी) गत ख्यातिवाद-प्रकरण और ख्यातिवाद (-शङ्करचैतन्यभारती) गत सदसत्ख्यातिप्रकरण व सत्ख्यातिप्रकरण का यहाँ बहुलता से उपयोग हुआ है । इनके अलावा भी कुछ ग्रन्थों का इसमें यथावकाश उपयोग किया गया है । लेखक उन सब ग्रन्थों और ग्रन्थकारों का ऋणी है ।