SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ अनुसन्धान-७० लेकिन अनेक जगह आठ ख्याति का भी बयान है । जैसे - "अन्यथाख्यातिरख्यातिविवेकाख्यातिरेव च । असत्ख्यातिः प्रसिद्धार्थाख्यातिरेव च पञ्चमी || आत्मख्यातिस्तथा षष्ठी, ख्यातिः सप्तम्यलौकिकी । अष्टम्यवाच्यताख्यातिरित्यष्टौ नामतः स्मृताः ॥" पर प्रमाणशास्त्रों में इनके अलावा भी ख्यातियाँ देखने मिलती हैं । यहाँ निम्नोक्त ख्यातियाँ और उन पर अन्यथाख्यातिवादियों के द्वारा किया गया विचार सङ्केप में प्रस्तुत किया जाएगा । चूंकि इन ख्यातियों में अन्यथाख्याति ही बलवती व प्रमाणभूत है, और जैन, नैयायिक, कुमारिल भट्ट इत्यादि के द्वारा स्वीकृत है, इसलिए उसीके द्वारा अन्य ख्यातिओं का खण्डन यहाँ प्रस्तुत है। ___ख्यातिनिरूपण निम्नोक्त क्रम से किया जाएगा - भ्रमज्ञान के विषयभूत बाह्यार्थ की सत्ता न स्वीकारने वाले दार्शनिकों की ख्यातियाँ : १. माध्यमिकों की असत्ख्याति २. योगाचारों की आत्मख्याति ३. ब्रह्माद्वैतवादियों की अनिर्वचनीयख्याति ४. चार्वाकों की अख्याति ५. न्यायटीकाकार आदि की विविध असत्संसर्गख्यातिया; ज्ञान में अविद्यमान का प्रतिभास न स्वीकारने वाले दार्शनिकों की ख्यातियाँ : ६. साङ्ख्यों की प्रसिद्धार्थख्याति ७. मीमांसकों की अलौकिकख्याति ८. रामानुजाचार्य आदि की विविध. सत्ख्यातियाँ; भ्रमज्ञान की अन्यथा विवेचना करने वाले दार्शनिकों की ख्यातियाँ : ९. प्राभाकरों की विवेकाख्याति १०. जैन, नैयायिक आदि की अन्यथाख्याति ११. विविध सदसत्ख्यातियाँ क्रमशः निरूपण - १. माध्यमिक व सौत्रान्तिक सम्मत असत्ख्याति __ जिस ज्ञान में जिस अर्थ का प्रतिभास होता है उसीको उस ज्ञान का आलम्बन मानना उचित है - इस बात को मान लेने पर प्रश्न होगा कि भ्रमज्ञान में प्रतिभासमान वस्तु ज्ञानात्मक होती है या अर्थात्मक ? |
SR No.520571
Book TitleAnusandhan 2016 09 SrNo 70
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy