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मार्च - २०१६
राउ भणइ देस-देसांतरी, जोसें देस-वदेस फिरी; नारीनों दोहिलो संघात, ओम जाणीनइं मानी वात... ८ दीधी विद्या सारी दोय, अंजन करे न पेखइ कोय; आगासगामिनी बीजी दीध, राय जमाइनइं हित कीध... ९ त्रिहु मास ऊपरि दिन सात, हुं आविस जोई सवि वात; करीय मनावी चाल्यो वीर, मन चिंतइ साहस-धीर... १० जिहांथी लीधो विद्याधरी, पहिलु जोयो ते सवि फिरी; विद्यातणइ प्रभावें करी, आव्यो ततखिण तिहां संचरी... ११
. ॥ दूहा ॥ अंबर ऊडी आवीयो, निरखइ ते वन माहि; तिण वड-तल आवी करी, कुमर दहो दिस चाहि... १२ नारि नारि जंपइ इसु, साद करइ सुविसाल; उलंभा देवइ देवनि, जोवइं वन निरमाल... १३ दिवस गयो रयणी थइ, सोधतां ते नारि; ओक असंभम वातडी, दीठी वनह मझारि... १४ राति अंधारी अवडं, संचल हूवो जाम; ओक नारि आक्रंदती, जंपइ अरिहंत नाम... १५ जनम जनम अरिहंत सरण, मुख विलवलइ अपार; सबद सुणीनइं कुंवरि, सज कीया हथियार... १६ गईवर-मुख नारी पडी, साही भइकड जंत; नवि मारइ मेल्लइ नही, कुमरिं ते पेखंत... १७
... ॥ पधडी छंद ॥ तव धायो धसमसंत वीर, कर धरइ करवाल करती धीर; मुख हाकइ थाकई नही लगार, जाणे परि सिंघह अपार... १८ करि मोडइ मुंछ विसाल-वाल, रातडा नयण कीधा विकराल; ऊधसइ जिम संड मत्त, वह परि उगमाइ तिलत्त(?)... १९ बोलाव्यो गयवर तेणि वेग(गि), ओ नारि छोडि मुह केडी लगि; ते सुणीय वयण मेंल्हीय बाल, थयुं कुमर-केडि देखंत फाल... २०