________________
अनुसन्धान-६९
मुनि-श्रीउदयसागरजी-कृत थूलिभद्र-चन्द्रायणा
- सं. मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय
स्थूलिभद्र-कोशा ओ दम्पतीनी जीवनगाथा एटली चित्ताकर्षक अने हृदयसन्तर्पक छे के कविओने अने सर्जकोने सदैव प्रेरित-उत्तेजित करती रही छे. एक तरफ उन्माद गणी शकाय ए हदनो राग अने बीजी तरफ वैराग्यनो एटलो ज तीव्र उन्मेष; एक तरफ आखा जगतने भूली जवा मजबूर करे एवी दुन्यवी प्रेमनी पराकाष्ठा . अने बीजी बाजु आखा जगतथी उपर उठावी लेती दिव्य साधना - आवां, विरोधी जणातां अने छतां एकबीजामां गूंथायेलां तत्त्वोथी समृद्ध दाम्पत्यजीवननी ऊर्ध्वगाथाने वर्णवतां अनेकानेक मध्यकालीन पद्यकाव्यो प्राप्त थाय छे. आ काव्य ए एवं ज एक पद्यकाव्य छे.
सामान्यतः 'चन्द्रायणा, चन्द्राउला' जेवा काव्यप्रकारो मध्यकालीन साहित्यमां विपुल सङ्ख्यामां जोवा मळे छे. पण केटलाक काव्यप्रकारोमां खेडाण बहु ओछु थयेलुं देखाय छे. 'जैन गूर्जर कविओ'नी समग्र कृतिसूचीमां ‘चन्द्रायणा' प्रकारनी फक्त एक ज कृतिनी नोंध छे - जिनेश्वरसूरि(मदनयुद्ध)-चन्द्रायणा. प्रस्तुत कृतिथी ओ प्रकारनी उपलब्ध काव्यकृतिओमां एकनो उमेरो थाय छे.
'चन्द्रायणा' अटले केवो काव्यप्रकार ? ते जाणवायूँ कोई साधन जड्यु नथी. पण प्रस्तुत कृतिमां कडीओ बंधारण जोतां आ प्रकारनी बे विशेषताओ नजरे पडे छे : १. कडीनी चारे पङ्क्तिमा ४-४ मात्राना ४ गण होय छे, मतलब के दरेक पङ्क्ति १६ मात्रानी होय छे. २. कडीनी दरेक पङ्क्तिमां अन्ते वर्णानुप्रास जळवाय छे. आ बन्ने विशेषताओने लीधे काव्य गवाय त्यारे केटलुं मधुर बनतुं हशे तेनी कल्पना थई शके छे. कविले पोते 'चन्द्रायणा'ने छन्द तरीके ओळखाव्यो छे अने तेने गावा माटे केदार-गोडी राग दर्शाव्यो छे ते वात पण नोंधपात्र छे.
३९ दूहा + १०९ चन्द्रायणा छन्दनी कडीओ ओम कुल १४८ कडीओ धरावता आ काव्यमां स्थूलिभद्रना जन्मथी मांडीने कोशाने प्रतिबोध करवा सुधीनी घटनाओनुं क्यांक विस्तृत अने क्यांक सक्षिप्त बयान छे. कर्ता- इङ्गित छे स्थूलिभद्रनो कामविजय दर्शावीने धर्मनी महत्ता सिद्ध करवानुं. पण तेओ ते बाबतमां सहेज पण अधीराई दाखव्या वगर, शतदल कमलनी जाणे एक-एक पांखडी