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________________ मार्च - २०१६ ३३ दोहिलु रे विरह वाल्हां तणुं, वर मरण दहइ एकवार; नितमरण' नीसासे करी, कुण जाणइ रे विरहीयां सार. लो० ३ नेहे रे बांध्या हरिणलां, अवगणी जीवित देह;६ दीई प्राण आवी दूरिथी, साचु साचु हरिण सनेह. लो० ४ तस केडि तां छांडि नहीं, जां लगि मरण धरंति; अहीं जूओ हरिण ऊखाणलं, जेह साथि रे जस मन हुंति. लो० ५। पापी रे दोहिलु वेधडो, वेध्यां ते मरइं सुजाण; जिम गान-गुणइं मृग वेधीया, आपइं आपई रे आपणडा प्राण. लो० ६ 'गीत गुणना वेधीया, मृग दीइं जीवित दान; ते हरिण वनवासी भलां, नहीं भलां रे माणस अजाण. लो० ७ मोकलुं इंद्री काननु, मृग लहई दुख अपार; जयवंत पंडित बूझवई, टालु टालु रे विषय विकार. लो० ८ इति कर्णेद्री गीतं २. नाशिका गीत कमलणी वींटी कांटडई, वली वसइ कादवि कंठि; तुहि भमर वेध-विलूधडउं, नवि मूंकि रे कमलनी पूंठि. भोगीडा लै, भोला भमरा म राचि, तुं तु बंधाइसि' कमलिनी काजि; तुं तु वेधडइ विलुधडउ आज, नवि देखई करतु अकाज. [आंकणी] २ जेह साथि लागु वेधडं, ते कहोनइं२ किम मेहलाई; सुगुणा साथि मिलंतडां, जे भावि रे ते वली थाइ. भो० ३ जेह साथि जेहनइं. नेहडु, ते दोष न गणई तास; जूओ कमल भमर तणी परि... रातु रातु रे परिमल वास. भो० ४ नवि गणई कंटक वेदना, नवि धरई बंधन दुःख; अलि कमल परिमल वेधीउं, मानइं मानई रे मन मांहि सुख. भो० ५ नवि रहइं तु तसु विणु मिलइ, जे साथई जसु मन होइं; जे रंग राचइ कमलसुं, वेधिउं वेधिउं रे भमर रस जोइं. भो० ६
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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