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________________ मार्च - २०१६ १८९ हेमचन्द्राचार्य पूरे शब्दशास्त्रज्ञ थे। उनके संस्कृत-प्राकृत व्याकरण, काव्यानुशासन एवं विविध कोश-ग्रन्थ भारतीय परम्परा के प्रामाणिक शास्त्र हो गये हैं । मेरे लिये संस्कृत के पर्यायवाची शब्दों की जानकारी के लिये अभिधानचिन्तामणि एक अनमोल ग्रन्थ है जिसमें बहुत शब्द-रत्न अभी भी गुप्त रहते हैं । साधारण संस्कृत शब्दों के अतिरिक्त लेखक ने इस कोश में विभिन्न दुर्लभ शब्द भी संग्रहीत किये हैं, जो जैन सन्दर्भो में ही मिलते हैं । हेमचन्द्राचार्य ने नवीन और प्राचीन सभी प्रकार के शब्दसमूह का रक्षण और पोषण प्रस्तुत किया है। १२वीं शती का रचनाकार उस समय की प्रचलित भाषा से प्रभावित कैसे न हो सका? अभिधानचिन्तामणि में अनेक ऐसे शब्द आये हैं, जो अन्य कोशों में नहीं मिलते । हेमचन्द्राचार्यरचित वीतरागस्तोत्र काव्य एक उनका दूसरा ग्रन्थ है जो मुझे अधिक आकर्षित करता है । शब्दरचना का सौन्दर्य वीतराग के सौन्दर्य का वर्णन करने के लिये उचित है । हेमचन्द्राचार्य तीर्थंकर के शरीर पर वह सौन्दर्य और धर्मशीलता के गुणों का आरोप करते हैं क्योंकि वह किसी भी परिवर्तन से प्रभावित नहीं होता। एक श्लोक में कहा जाता है कि शुद्धता से तीर्थंकर का शरीर लोगों को आकर्षित करता है । आचार्य विजयशीलचन्द्रसूरिजी महाराज के पद्यानुवाद में यह पढ सकते हैं । नीला प्रियंगु, स्फटिक उज्ज्वल, स्वर्ण पीला चमकता फिर पद्मराग अरुण व अंजन रत्न श्यामल दमकता । इन-सा मनोरम रूप मालिक! आपका, नहाये बिना भी शुचि सुगंधित, कौन रह सकता उसे निरखे बिना ?|| (VRS 2.1) ___जिन देव वीतराग हैं, इसलिये पूरे निवृत्त होते हैं और हिन्दु देवताओं से विलक्षण हैं । कवि ने वीतराग की अलौकिकता अद्भुत रीति से स्थापित की है । अलौकिकता प्रदर्शित करते हुए उन्होंने विविध अलंकारों का उपयोग किया है । हेमचन्द्राचार्य काव्यशास्त्रज्ञ तो थे, पर प्रशंसनीय कवि भी थे । ऐसे श्लोक पढना मन एवं जीवन को अवश्य प्रभावित करता है। कलिकालसर्वज्ञश्री हेमचन्द्राचार्य-चन्द्रक मिलने का सुपात्र हूँ कि नहीं, यह नहीं जानती, पर यह स्पष्ट है कि जैन ग्रन्थों, जैन श्रावक-श्राविकाओं एवं जैन साधुसाध्वियों के सान्निध्य में पूरा समय बिताना मेरी जीवन-ज्योति हो गई है।
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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