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________________ १८८ अनुसन्धान-६९ है हाल (सातवाहन) रचित गाहासत्तसई का अनुवाद और दूसरा वसुदेवहिण्डी का पूरा अनुवाद एवं अध्ययन । अर्धमागधी, जैन माहाराष्ट्री तथा अपभ्रंश से मिश्रित भाषावाली वसुदेवहिण्डी की आगमिक कथाओं और उत्तरकालीन कथा साहित्य के बीच में विशेष स्थिति होती है । I वैसे ही श्वेताम्बर गच्छों का इतिहास, जैन तीर्थों का विकास या जैन उत्सवों के मानने की विधि इत्यादि भी सालों साल मेरे संशोधन - विषय हो गये । जैन श्रावको-श्राविकाओं के बीच में रहने से और उनके धार्मिक जीवन थे को देखने से कौतुक बढ़ गया । अनेक शोधलेख ऐसे ही पैदा हुए अंचलगच्छ, अक्षयतृतीया व हस्तिनापुर के उपर जो कुछ भी मैं लिख सकी पुराने ग्रन्थों के आधार पर और आधुनिक अन्वेषण से निकल गये । जैन साधु-साध्वी जीवन के उपकरण, उनके अनेक पारिभाषिक शब्दों को समझने और उनके वर्णन देने का प्रयत्न हुआ । आज आप लोग मुझे कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य - चन्द्रक अर्पण करने को ठीक समझे । हेमचन्द्राचार्य रचित कृतियाँ पढ़े बिना क्या कोई विद्वान हो सकता है ? वहाँ फ्राँस में अपने विद्यार्थियों को भी हम इनके संस्कृत ग्रन्थ पढ़ने को देते हैं या M.A. के रूप में विषय सौंप देते हैं । हेमचन्द्राचार्य असाधारण प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति थी और गुजरात प्रदेश की संस्कृति में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण हुआ । उनकी साहित्य - साधना बहुत विशाल एवं व्यापक है। उन्होंने सब तरह की कृतियों की रचना की । इनके ग्रन्थ रोचक, मर्मस्पर्शी एवं सजीव हैं। उनके त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में २४ तीर्थंकरों, १२ चक्रवर्तियों, ९ बलदेवों, ९ वासुदेवों तथा ९ प्रतिवासुदेवों की जीवनकथाओं का वर्णन किया गया है । पर २४ तीर्थंकरों के समवसरणों के अवसर पर एक साथ जैन धर्म का शिक्षण भी दिया गया है। सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन तथा सम्यक्वारित्र के विषय पर तीर्थंकरों के व्याख्यानों से हमको पूरी शिक्षा मिल जाती है । ९ तत्त्व, ८ कर्मप्रकृति इत्यादि का स्पष्ट विवेचन किया गया है । दार्शनिक मान्यताओं का भी विशद विवेचन विद्यमान है । लेखक उचित उपमाओं द्वारा हमको सारे मूल-सिद्धान्तों को समझाता है । केवल यही नहीं, परन्तु यह त्रिषष्टि वास्तव में एक सर्वोत्तम संस्कृत महाकाव्य मना जा सकता है । प्रकृति-वर्णन, ऋतु-वर्णन, स्त्रीसौन्दर्य-वर्णन सर्वोत्कृष्ट हैं । इसका कारण यह भी है कि
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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