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________________ १८६ अनुसन्धान-६९ प्रकाश है । जैसे ही दीप से ज्योति आती है, वैसे ही साधुओं और साध्वियों से । इसीलिये विशेषकर आचार्य विजयशीलचन्द्रसूरिजी महाराज तथा साध्वी चारुशीलाजी महाराज का दर्शन करने की जैसे मेरी आदत बन गयी । उस समय मैंने जैन मन्दिरों का सर्वप्रथम दर्शन किया और पर्युषण के अवसर पर मैंने अनेक साधुओं को कल्पसूत्र पढते सुना । शुरु से, जैन परम्परा से मैं इसी लिये आकर्षित हो गई कि इतनी पुरानी है तो भी आज तक इतनी जीवित रह गई है । व्याख्यान सुनते-सुनते हम को पता चलता है कि जैन साधु जैन आगमों का सार आधुनिक परिषद के सामने तथा आधुनिक भाषाओं द्वारा कैसे प्रसारित करते हैं । आश्चर्य की बात यह हुई कि जिन व्यक्तियों के पास मैं पढने जाती थी, ये सब लोग जीवन-दोस्त बन गये हैं। उनसे घनिष्ठ सम्पर्क रखना मेरे लिये मुख्य बात है । जहाँ तक कि मुझे ऐसा लगता है कि आत्मीय जीवन और शोध जीवन के बीच में कोई अन्तर नहीं है । विशेषकर शेठ परिवार और मालवणिया परिवार वास्तव में मेरे परिवार-सदस्य जैसे बन गये हैं । जैन हस्तलिपियों की विशेषताएँ एवं इनका इतिहास मेरा एक विषय है । यह आरम्भ से हुआ । सुपात्रदान की आठ कथाएँ, जिन पर मैंने Ph.D. कर लिया, धर्मदास की उवएसमाला की एक गाथा पर आधारित हैं । उनकी भाषा संस्कृत थी, पर बीच में अनेक प्राकृत सुभाषित भी उद्धारित किये गये थे। यह अप्रकाशित ग्रन्थ था, पर इसकी एक हस्तप्रत फ्रांस में Strasbourg Library में रखा था । इस संग्रहालय की सूचि चन्द्रभाल त्रिपाठी ने बनाई थी । एक और प्रति Germany-Berlin में थी । पर अहमदाबाद आने के बाद हमको पता चला कि यह कथासंग्रह गुजरात और राजस्थान में अच्छी तरह प्रचलित था । और हस्तप्रत मिल गयी । इसके अतिरिक्त पाटण की एक प्रति से इन कथाओं का पुरानी गुजराती भाषा में अनुवाद भी प्राप्त हुआ। उसी समय से मैं प्रो० त्रिपाठी से परिचित हो गयी । तब से उनके देहान्त तक हम दोनों ने घनिष्ठ सम्बन्ध बनाए रखा और साथ-साथ बहुत काम किया। Manuscriptology की उनकी पूरी जानकारी थी । उन्होंने मुझे सब कुछ सिखाया । स्वर्गवास से पहले उन्होंने मुझसे प्रतिज्ञा करवा ली कि British Library की जैन हस्तप्रतों की सूचि समाप्त करूंगी। अनेक साल बीत गये
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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