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अनुसन्धान-६९
२. आ व्यक्ति कोण होई शके ते विशे विचारीओ. "तेमनी आज्ञाथी तेमना शिष्ये आ वृत्तिनी रचनानो प्रारम्भ कर्यो" आ वाक्य परथी, वृत्तिकार उपाध्याय यशोदेवना गुरु देवगुप्तसूरिजीनो 'तद्' थी निर्देश थयो छे अम सहेजे समजी शकाय. तो पछी अना पछी तरत आवता ८मा पद्यमां "लोकान्तरिते तस्मिन् (-तेमना काळधर्म बाद)" मां 'तद्'थी देवगुप्तसूरिजींना गुरु सिद्धसूरिजीनुं कई रीते ग्रहण करी शकाय ? अने जो अम करीओ तो, "तस्य विनेयेन निजगुरुभ्रात्रा''मां सिद्धसूरिजीना शिष्यने यशोदेव उपाध्याय कई रीते पोताना गुरुभाई गणावी शके ? माटे प्रशस्तिनां पद्य ७ अने ८मां आवती 'तद्'थी सूचित तमाम हकीकतो उपाध्याय यशोदेवना गुरु देवगुप्तसूरिजीने लागु पडे छे ते समजी शकाय तेम छे.
३. हवे प्रश्न बाकी रहे छे पद्य मां सूचित उपाध्यायपदवी कोने मळी हती तेनो. पद्य तो अटलुं ज कहे छे के "जेमने नि:सीम गुणोंना भण्डार स्वरूप जोईने सिद्धसूरिजीओ पोतानी पाटे स्थापन करवा माटे उपाध्याय पदवी आपी हती." आमां यशोदेव उपाध्यायनी उपाध्यायपदवीनुं सूचन छे अम सम्पादकश्रीओनुं कहेQ छे. पण कथन अटले वास्तविक नथी जणातुं के १. पद्यकार यशोदेव पोताना माटे 'निःसीमगणैरुपेतं' शब्द वापरे ते असम्भवित छे. २. सिद्धसूरिजी पोतानी पाटे देवगुप्तसूरिजी जेवा समर्थ शिष्यने बदले प्रशिष्य यशोदेवने स्थापित करवानुं विचारे ते पण बनवाजोग नथी. ३. संस्कृतभाषानी स्थापित प्रणालिका मुजब एक सळंग सन्दर्भे प्रयोजाता ‘यत्तत्' एक ज व्यक्तिना सूचक होय तेम सामान्यतः बनतुं होय छे. हवे जो ७८ मा पद्यमां 'तत्' थी देवगुप्तसूरिजी सूचवाता होय तो, ६ठ्ठा पद्यमां 'यत्' थी ओमने छोडीने यशोदेव उपाध्याय ग्रहण करवा कोई प्रयोजन देखातुं नथी.
४. यशोदेव उपाध्याय अम कहे के "मने दादागुरु तो आचार्यपद आपवा इच्छता हता, पण तेमनो काळधर्म थई जतां तेम न बन्यु." अने देवगुप्तसूरिजी जेवा समर्पित शिष्य पोताना गुरुनी इच्छाने पूर्ण न करे - आ बधुं गळे ऊतरे अम नथी.
तेथी आ प्रशस्तिपद्योनु तात्पर्य अम समजाय छे के : श्रीकक्कसूरिजीना श्रीसिद्धसूरिजी पट्टधर थया. अने तेमना पट्टधर श्रीदेवगुप्तसूरिजी थया.