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मार्च २०१६
अलगथी करी होवाथी ते जोईओ
प्रामाण्यनुं कार्य छे अर्थनो यथावस्थित बोध उत्पन्न करवो ते. आ कार्य ते कोईनी अपेक्षा राखीने करे छे ओम न कही शकाय. केमके प्रमारुप कार्य जन्माववामां ओने कोनी अपेक्षा होय ? - संवादज्ञाननी के कारणगुणोनी ? संवादनी अपेक्षा तो मानी न शकाय. केम के जो प्रामाण्य प्रमात्मक बोध उत्पन्न करे, तो अने अनुसरीने प्रवृत्ति थाय, अने तो प्रवृत्तिनी सफलताथी संवादज्ञान जन्मे. हवे जो प्रामाण्य प्रमात्मक बोधरूप कार्य ज संवादनी अपेक्षा वगर न करी शकतुं होय, तो संवाद जन्मे ज कई रीते ?
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कारणगुणोनी अपेक्षा पण प्रामाण्यने होय ते वात बराबर नथी. केम के अक तो कारणगुणोनुं ज्ञान ज शक्य नथी, ते वात पहेलां कही आव्या छीओ. अने बीजुं कारणगुणोना ज्ञानना प्रामाण्यनो निश्चय करवा ओना कारणगुणोनुं ज्ञान जोईशे, ओना माटे ओना कारणगुणोनुं आ रीते अनवस्था ज सर्जाशे. माटे प्रामाण्य स्वतः - पोतानी जाते ज अर्थनो यथावस्थित बोध उत्पन्न करी शके छे, तेम मानवुं जोईओ.
प्रमात्मक ज्ञान
कार्यमां प्रामाण्यनुं परतस्त्व : (बौद्ध)
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प्रमाण कोईनी अपेक्षा वगर प्रमाने जन्म आपी शके ते वात ज सम्भवित नथी. केम के "कारणसामग्री कार्यनी जनक होय छे, कोई अकाद कारण नहि" ओ नियम छे. प्रमाण प्रमाजनकसामग्रीनो अंक अंश छे. ते अकलुं प्रमा न जन्मावी शके, तेने माटे बीजानी अपेक्षा रहे ज.
वळी, अर्थनो यथावस्थित बोध जो निमित्त वगर ज थतो होय, तो तो बधे ज थवो जोईओ. पण तेवुं बधे ज नथी थतुं, ते सूचवे छे के ते कोईकनी अपेक्षा राखे ज छे. आ अपेक्षित पदार्थ ओटले ज ज्ञानमां रहेलुं संवादित्व- संवाद जन्माववानी योग्यता. आ योग्यतानो निश्चय संवादज्ञाननी उत्पत्ति वगर नथी ज थतो. अने आ निश्चयना बळे ज प्रामाण्य अर्थनो यथावस्थित बोध जन्माववारूप स्वकार्य करी शके छे, माटे प्रामाण्य स्वकार्यमां पण परतः ज सिद्ध थाय छे.
ट्रंकमां, प्रामाण्यना संशयथी पुरुष अर्थक्रियामां प्रवृत्त थाय छे अने