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________________ मार्च - २०१६ १७१ केम के ज्ञानगत प्रामाण्यनो निश्चय थाय तो ज ते ज्ञान प्रवृत्तिमा प्रवर्तक बनी शके. तेथी तमे जे प्रवृत्ति थया पछी प्रामाण्यना निश्चयनी वात करो छो, ते प्रवृत्ति ज प्रामाण्यना निश्चय वगर थवी शक्य नथी. वास्तवमां जोइओ तो, "मारी प्रवृत्ति विफल न थाय" अम विचारीने व्यक्ति प्रवृत्तिना प्रेरक ज्ञाननी यथार्थतानो निश्चय करवा इच्छे छे. हवे जो प्रवृत्ति ज प्रामाण्यना निश्चय वगर थई शकती होय, तो प्रामाण्यना निश्चयनी जरूर ज शी छे ? प्रवृत्ति थया पछी अने सफळता के विफळता मळी गया पछी ज्ञाननी यथार्थता-अयथार्थता नक्की करवानो मतलब ज कयो रहे छे ? । वळी, तमे जे अर्थक्रियाज्ञानना आधारे प्रवर्तकज्ञानना प्रामाण्यनो निश्चय कहो छो, ते अर्थक्रियाज्ञानना प्रामाण्यनो निश्चय केवी रीते थाय छे ? ते स्वयं अप्रमाण होय तो प्रमाणनिश्चय करावी शके नहि. अने तेनो निश्चय अन्य ज्ञानना आधारे करवा जशो तो तो "ओ अन्य ज्ञानना प्रामाण्यनो निश्चय कोना आधारे?" अम आ वातनो अन्त ज नहि आवे. अने जो तमे अर्थक्रियाज्ञानने स्वतः प्रमाण मानशो, तो अमे कहीओ छीओ तेम मूळभूत प्रवर्तकज्ञानने ज स्वतः प्रमाणभूत मानवामां शुं वांधो आवे छे ? बीजी वात, ज्ञान जो अप्रमाणभूत होय, तो तेना पछी अवश्य ते ज्ञानथी विरुद्ध जणावनारुं ज्ञान (-बाधकज्ञान) अथवा ते ज्ञानने जन्मावनार कारणसामग्रीनी अशुद्धिनुं ज्ञान थाय ज छे, अने तेथी ज्ञानमां अप्रामाण्यनो निश्चय थई शके छे. प्रमाणभूत ज्ञान पछी तो आवां ज्ञानो जन्मतां ज नथी, तो त्यां अप्रामाण्यनी आशङ्का थाय ज कई रीते ? अने जो कदाच पण कोईक कारणसर ओवी आशङ्का जन्मे, तो संवादज्ञान व.थी ओ अप्रामाण्यनी आशङ्कानो निरास थई शके छे. जो के ओ संवादज्ञान व. मूळ ज्ञानना प्रामाण्यनो निश्चय नथी करावतां, ओ निश्चय तो स्वतः थेयेलो ज होय छे; पण ओ निश्चय थया पछी जे आशङ्का जन्मेली तेनो निरास ज ते करी आपे छे. तेथी ओवी क्वचित् सर्जाती आशङ्काने मुख्य बनावी, दरेक ज्ञानमां अवी आशङ्का कल्पवी अने संवादथी ज प्रामाण्यनो निश्चय मानवो ते तो अनर्थकारी ज गणाय. "संशयात्मा विनश्यति !" १. दार्शनिक परिभाषामां आ वात 'अनवस्था दोष' तरीके ओळखाय छे.
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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