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अनुसन्धान-६९
जुदी वस्तु नथी.
प्रामाण्यने शक्तिस्वरूप समजीने ओना स्वतस्त्व अंगे जे वात करी, ते वात तो अयथार्थ बोधजनक शक्तिस्वरूप अप्रामाण्य अंगे पण लागु पाडी ज शकाय. अने ओ रीते अप्रामाण्यने पण. उत्पत्तिमां स्वतः गणी ज शकाय. तो शा माटे अप्रामाण्यने परतः गणो छो ? वास्तवमां अमुक पदार्थोमां अमुक ज प्रकारनी शक्तिनो नियम ज सूचवे छे के शक्ति पण कारणसापेक्ष ज छे, स्वतः नहीं. माटे प्रामाण्य-अप्रामाण्य उभयने परतः ज गणवा जोइओ. प्रामाण्यनुं ज्ञप्तिमा स्वतस्त्व : (-मीमांसक)
प्रामाण्यनी ज्ञप्तिमां पण अन्य वस्तुनी जरूर नथी होती. केम के तमे प्रामाण्यनी ज्ञप्तिमा जेनी अपेक्षा समजो छो ते वस्तु कई छे - गुणो के संवाद ? मतलब के ज्ञानजनक सामग्री गुणयुक्त छे माटे ज्ञान शुद्ध छे - आ रीते प्रामाण्यनो निश्चय स्वीकारो छो ? के ते ज्ञानथी जन्य प्रवृत्ति सफळ बने छे माटे ज्ञान प्रमाणभूत छे - ओ रीते प्रामाण्यनो बोध तमने मान्य छे ? ।
कारणगुणोनी अपेक्षाओ प्रामाण्यनो निश्चय स्वीकारवो शक्य नथी. केम के गुणोनुं ज्ञान प्रत्यक्ष के अनुमान-प्रमाणथी करवू शक्य नथी अने ओ वात अमे पहेलां ज कही आव्या छीओ. वळी, 'अनुभव यथार्थ छे, माटे कारणसामग्री गुणयुक्त छे' - ओ रीते पण तेमनो निश्चय न थई शके, केम के आनो मतलब ओम थाय के, 'गुणोथी जन्य छे माटे ज्ञानमां प्रामाण्य छे' अने 'ज्ञान प्रमाणभूत छे माटे गुणोथी जन्य छे' आवा परस्पर आश्रित अनुमानो स्वीकारवानां थाय.' आमां तमे कयुं अनुमान पहेलां करशो अने कयुं पछी ? माटे कारणगुणोनी अपेक्षाओ प्रामाण्यनो निश्चय शक्य नथी.
पहेलां ज्ञान थाय, पछी से ज्ञानथी जन्य ते ज्ञानना विषयभूत पदार्थ विशे प्रवृत्ति (-अर्थक्रिया) थाय अने मे प्रवृत्ति सफल बने, अटले के "मने जे पदार्थ- जेवा स्वरूपवाळू ज्ञान थयुं हतुं, तेवा स्वरूपवाळो ज ते पदार्थ मळ्यो" अq ज्ञान (-अर्थक्रियाज्ञान) जन्मे, तो ओ ज्ञानात्मक संवादना आधारे पूर्व ज्ञानना प्रामाण्यनो निश्चय थई शके - आवो विचार पण बराबर नथी. १. दार्शनिक परिभाषामां आ वात 'इतरेतराश्रय दोष' तरीके ओळखाय छे.