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________________ १५६ अनुसन्धान-६९ होवाने लीधे, आमां पण परतःप्रामाण्यवादी तरीके तेने गणवामां आवे छे तेम, योग दर्शन, पण समानतन्त्र ओवा साङ्ख्यदर्शन जेवू ज मन्तव्य होय अप मानवामां झाझी आपत्ति नथी लागती. २. प्रामाण्य स्वतः अने अप्रामाण्य परतः - मीमांसा (पूर्व) अने वेदान्त (उत्तर मीमांसा) - उभय मते ज्ञानोत्पत्ति अने ज्ञानग्रहणनी प्रक्रिया विभिन्न होवा छतां, प्रामाण्य-अप्रामाण्यनी बाबतमा बन्नेनुं मन्तव्य सरखं ज छे. उभय मते प्रामाण्यनी उत्पत्ति अने ज्ञप्ति बन्ने स्वतः, अने अप्रामाण्यनी उत्पत्ति अने ज्ञप्ति बन्ने परतः स्वीकृत छे. उत्पत्तिमां स्वतस्त्वनो मतलब छे तमाम ज्ञानोनी जनक जे साधारण सामग्री छे, तेमांथी ज्ञाननी साथे ज उत्पन्न थq; बीजा कोई विशिष्ट तत्वनी उत्पत्तिमां, अपेक्षा न राखवी, अर्थात् ज्ञानजनक सामग्री प्रामाण्यवाळा ज्ञानने ज जन्म आपे छे. माटे कोई पण ज्ञानमां प्रामाण्य स्वतः (-स्वाभाविकपणे) होय जळे हा, जो ज्ञानसामग्रीमां दोष पण भळे ओटले के दोषयुक्त ज्ञानसामग्री होय तो तेनाथी उत्पन थतुं ज्ञान अप्रमाण होय छे. माटे उत्पत्तिमां अप्रामाण्य ज्ञानजनक सामान्य सामग्री उपरान्त दोषोनी पण अपेक्षा राखतुं होवाथी परतः (-परापेक्ष) छे, अने प्रामाण्यने कोईनी अपेक्षा न होवाथी स्वतः (-स्वाभाविक, निरपेक्ष) छे.२ आ मतमां ओक समस्या से सर्जाई शके छे के चक्षुगत निर्मळता, धातुनी समता, मननी स्वस्थता व. प्रमाणभूत ज्ञानना जनक गुणो तरीके लोकशास्त्र उभयसम्मत छे. हवे जो आ गुणोने प्रामाण्यजनक तरीके न स्वीकारीओ, अटले के प्रामाण्यने उत्पत्तिमां आ गुणोनी अपेक्षा छे अम न मानीओ तो, गुणोना अनुभवसिद्ध कर्तृत्व-जनकत्वनो ज विरोध आवशे. तो आनी सङ्गति कई रीते करवी ? आ समस्यानो उकेल स्वतःप्रामाण्यवादीओ अम सूचवे छे के अमे ओम नथी कहेता के ओ गुणोनुं कशुं कर्तव्य ज नथी; ओ गुणो तरीके सम्मत १. उत्पत्तौ प्रामाण्यस्य स्वतस्त्वं नाम कार्यकारणादेव कार्येण सहोत्पत्तिः - अथर्वभाष्य. २. "उत्पत्तौ स्वतस्त्वं नाम ज्ञानकरणमात्रजन्यत्वम् । येन ज्ञानं जायते तेनैव तद्गतं प्रामाण्यमपि जायते इति ।" - प्रमाणपद्धतिः - परिच्छेद १
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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